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________________ को काव्योचित बनाने का यह प्रयत्न है, यद्यपि सर्वत्र उन्हें सफलता नहीं मिली है और जहाँ पारिभाषिक शब्दों की प्रचुरता है, वहाँ काव्य-मर्म तक पहुँचने में कठिनाई होती है। इस दृष्टि से कबीर के समाजदर्शन के संदर्भ में यह प्रश्न बराबर बना रहेगा कि उनके व्यक्तित्व की कई दिशाओं में एकसूत्रता के बिंदुओं की खोज करते हुए, उनमें संयोजन कैसे स्थापित किया जाय, विशेषतया सामाजिक चेतना और आध्यात्मिक चेतना में। ___ जहाँ संभव है, कबीर अपनी सर्जनात्मक कल्पना का उपयोग करते हुए, शब्दों को नया अर्थ देते हैं, अपने अभीप्सित आशय तक पहुँचने के लिए। उन्होंने 'सबद', शब्द का प्रयोग करते हुए, उसे अर्थ-व्याप्ति दी है : शब्द ब्रह्म की शक्ति है, अक्षर-निर्मित है और साधना में 'सबद' का महत्त्व है। सिख धर्म में भी इसकी मान्यता है-सबद, कीर्तन आदि के रूप में। कबीर के लिए शब्द इस अर्थ में प्रमाण भी है कि वह पुस्तकीय नहीं है, अनुभव-प्रसूत है और इसलिए ऋषि-मुनि द्वारा प्रतिपादित मंत्र भी इसके अंतर्गत आते हैं। इस दृष्टि से 'सबद' प्रमाणित शब्द है-आचरण योग्य। गुरु से प्राप्त ‘सबद' कबीर के लिए मूल्यवान हैं क्योंकि उनसे भ्रम का नाश होता है, आलोक मिलता है। साधनापरक शब्दावली का प्रयोग करते हुए कबीर अंतिम लक्ष्य के प्रति सजग हैं : जब थै आतम तत्त बिचारा, तब निरबैर भया सबहिन थें काम, क्रोध गहि डारा। कबीर सावधान हैं कि अर्थ संप्रेषित होना चाहिए, इसलिए वे ठेठ शब्दावली में अपनी बात कहते हैं : बालम, खसम, बहुरिया-दुलहिनि, नदी-नीर, धरती-आकाश, गंगा-यमुना, माता-पूत, सूर्य-चन्द्र आदि के साथ जुलाहा व्यवसाय में प्रचलित पूरी शब्दावली। इस दृष्टि से उनके पद उल्लेखनीय हैं, जहाँ लोक से उच्चतर मूल्य-आशय की व्यंजना की गई है। कबीर कहते हैं : जोलाहा बीनहु हो हरिनामा, जाके सुर-नर-मुनि धरे ध्याना। कबीर के नाम पर भी पद प्रचलित हुए और वास्तविकता की पहचान में कठिनाई हुई। 'झीनी-झीनी रे बीनी चदरिया' में जुलाहा-व्यवसाय का उपयोग करते हुए कबीर पंचतत्त्व निर्मित शरीर का चित्र बनाते हैं। माया में लिपटा कर सबने इसे मलिन कर दिया, पर कबीर आत्म-विश्वास से कहते हैं : दास कबीर जतन तैं ओढ़ी, जस की तस धर दीन्हीं चदरिया। इस प्रकार के पदों में कवि का समाजदर्शन बहुत स्पष्ट है कि लोक से उच्चतर मूल्यों की ओर प्रयाण करना होगा। गृहस्थ भी अपने सत्कर्मों से उच्चतम मानवीय धरातल पर पहुंच सकता है। कबीर अपने समय से टकराने वाले प्रमुख कवियों में हैं और उन्होंने निर्भय भाषा में अपने विचारों को व्यक्त किया, जिससे सामान्यजन से संवाद स्थापित हो सका। विचार उनका प्रस्थान है, जिससे चलकर वे आध्यात्मिक भावभूमि तक आए और दोनों में उच्चतर मानवमूल्यों के समानसूत्र हैं। सामाजिकता में आशय संप्रेषित होता है, पर आध्यात्म के परंपरित रूप को छोड़ दें, तो जहाँ वह सहज भूमि पर है, उसके आशय तक थोड़ा प्रयत्न करके पहुँचना कठिन नहीं। अपने प्रयोजन के 104 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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