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________________ सर्वोपरि मानते हैं। उत्तरकांड के ज्ञान-भक्ति विवेचन में इसे देखा जा सकता है। तुलसी की क्षमता उनके संकल्पवान व्यक्तित्व में है, जहाँ वे राम को कर्मवान गुण-समुच्चय के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए, मूल्य-मर्यादाहीन समय में एक सार्थक मूल्यपरक संहिता की खोज करते हैं। आभिजात्य तोड़ते हुए, वे अपना मंतव्य अवधी जनभाषा में प्रतिपादित करते हैं और उनका पूरा मुहावरा वृहत्तर समाज से प्राप्त किया गया है। इसी से वे व्यापक स्वीकृति के भारतीय लोकजीवन के प्रवक्ता-कवि हैं। भक्तिकाव्य ने लंबी यात्रा की, लगभग चार शताब्दियों की और सामंतवादी समाज के कई दृश्य आए-गए। प्रश्न यह कि इन स्थितियों में भक्तिकाव्य का कौन-सा समाजशास्त्र आया और समाजदर्शन की क्या रूपरेखाएँ उभरीं। कवियों की अपनी बनावट है जो उनकी रचनाशीलता को रूपायित करती है, पर यह कहना भूल है कि निराकारी-निर्गुण की तुलना में साकारी-सगुण कम प्रगतिशील है। अथवा कृष्णकाव्य, रामकाव्य की तुलना में अधिक सेक्लुयर, पंथ-निरपेक्ष है। दृष्टि का अंतर हो सकता है और कथन-भंगिमा का भी, पर भक्तिकाव्य की लंबी यात्रा का कारण देवत्व नहीं है, इसके विपरीत उसकी मानवीय चिंता है, जो उसे आज भी किसी बिंदु पर प्रासंगिकता देती है, और उसे खारिज कर पाना उनके लिए भी कठिन, जो स्वयं को भक्तिमार्गी कहने से बचना चाहते हैं। भक्तिकाव्य का समाजशास्त्र है, समय-समाज से उसकी टकराहट, जो कभी कबीर की तरह जुझारू दिखाई देती है, और अन्यत्र संयत, पर असंतोष सबमें है। समाजदर्शन है-नए विकल्प की खोज, नए मूल्य-संसार की तलाश। राम-कृष्ण तो माध्यम हैं, वास्तविक लक्ष्य है, रचना-स्तर पर उच्चतर भावलोक की प्राप्ति। समाजशास्त्र और समाजदर्शन के लिए भक्तिकाव्य ने जिस अभिव्यक्ति-कौशल का आश्रय लिया, वह स्वतंत्र चर्चा का विषय है। पर रचना की प्रामाणिकता के लिए इन सजग कवियों ने पूरा मुहावरा लोकजीवन से ही प्राप्त किया-भाषा, छंद आदि। भक्तिकाव्य में मध्यकालीन लोकजीवन की उपस्थिति और एक वैकल्पिक मूल्य-संसार की तलाश उसकी सामर्थ्य का प्रमाण है। भक्तिकाव्य में समाजदर्शन और भक्तिदर्शन मिलकर अपने रचना-संसार को ऐसी दीप्ति देते हैं कि उसे कालजयी काव्य कहा जाता है। उसका वैशिष्ट्य यह कि वह अपने समय से संघर्ष करता हुआ, उसे पार करने की क्षमता का प्रमाण देता है और लोक को सीधे ही संबोधित करता है, पूरे आत्मविश्वास के साथ। उसका वैकल्पिक भाव-विचार-लोक उसका 'काव्य-सत्य' है, जिसे व्यापक स्वीकृति मिली। 88 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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