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________________ रामायण, हनुमन्ननाटक, प्रसन्नराघव का प्रभाव भी देखा जा सकता है। भारतीय भाषाओं में रामकाव्य रचे गए : कंब रामायण (तमिल), द्विपद रामायण (तेलुगु), अध्यात्म रामायण (मलयालम), तोरवे रामायण (कन्नड़), कृतिवास रामायण (बंगला) आदि। रामकथा प्राकृत-अपभ्रंश में भी गतिशील रही, किंचित् परिवर्तन के साथ। लोक-साहित्य पर तो उसका व्यापक प्रभाव है ही, साथ ही अन्य रामकाव्य भी हैं : रामायण कथा (विष्णुदास), ईश्वरदास, भावार्थ रामायण (एकनाथ) आदि। जिन विद्वानों ने राम भक्ति काव्य पर कार्य किया है, वे अनुसंधान के आधार पर प्रमाणित करते हैं कि हिंदी में तुलसीदास के पूर्व रामभक्ति रचनाएँ हुई। कृष्णभक्त सूरदास ने रामकथा का उपयोग किया और उनमें तुलसी से कुछ स्थलों पर आश्चर्यजनक भाव-साम्य हैं (प्रेमशंकर : रामकाव्य और तुलसी, पृ. 28-30)। प्रसंग है, सीता-हरण के पश्चात् राम की व्यथा का, जहाँ तुलसी कहते हैं : हे खगकुल हे मधुकर श्रेनी, तुम देखी सीता मृग नैनी। रूप-स्मरण के साथ, सूर का पद है (सूरसागर, 9 164) : फिरत प्रभु पूछत, बन-द्रुम-बेली अहो बंधु काहूँ अवलोकी इहिं मग बधू अकेली। अहौ बिहंग, अहौ पन्नग-नृप, या कंदर के राइ अबकै मेरी विपति मिटावौ, जानकि देहु बताइ। समय के दबाव में रचना अनेक दिशाएँ लेती हैं और कृष्णकाव्य, रामकाव्य में रसिक रेखाओं का प्रवेश हुआ जिससे उसकी सामाजिक चेतना दुर्बल हुई। संप्रदायों की यही सीमा-रेखा है कि वहाँ खंड-खंड दृश्य आते हैं, समग्र जीवन-छवि नहीं उभर पाती। नायकों की भी दुर्गति होती है और निगतिकालीन समय प्रक्षेपित होता है। केशवदास के पास पांडित्य है, शास्त्र भी, पर उनके पास वह उदात्त भाव-धरातल नहीं है कि वे तुलसी के काव्यनायक राम जैसा व्यक्तित्व रच सकें। आचार्य शुक्ल की टिप्पणी कि केशव को कवि-हृदय नहीं मिला था, इसी का संकेत है। कृष्ण-रामकाव्य की अनवरत धारा है, पर समाज में व्यापक स्वीकृति के लिए, शिखर रूप में सूर-तुलसी का नाम क्यों लिया जाता है ? इसलिए कि वे चरितनायकों के माध्यम से अपने समय से भी टकराते हैं और उसे एक नई दिशा देने का काव्य-संकेत करते हैं। इसी को रचना का समाजदर्शन कहा जाता है। इतिहास-क्रम की बात दूसरी है, पर महान् लेखक अपनी रचना के माध्यम से स्वयं इतिहास में विनम्र योगदान का प्रयत्न करते हैं। रचना-स्तर पर इसे प्रतिपक्ष अथवा विकल्प कहा जाता है। तुलसीदास की जीवनगाथा को लेकर विद्वान् आज भी एकमत नहीं हैं, यद्यपि रचना के बिंदु पर वे रामकाव्य के ही नहीं, संपूर्ण हिंदी भक्तिकाव्य के सर्वोपरि कवि हैं। उनकी जैसी व्यापक स्वीकृति विरल होती है, पर अन्य भक्त कवियों की तरह उन्हें भी लेकर विवाद कि सोरों में जन्मे थे, अथवा राजापुर में ? श्री चंद्रबली पांडे ने पूरी पुस्तक ही लिखी है जो 2011 वि. में छपी थी : 'तुलसी की जीवन-भूमि'। भक्तिकाव्य का स्वरूप / 85
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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