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________________ रसखान की भावप्रवणता ध्यान आकृष्ट करती है और उनकी रचनाशीलता प्रमाणित करती है कि भक्ति में जाति-वर्ण नहीं होते तथा काव्य में भाषा-विभाजन कत्रिम है क्योंकि संवेदन की समानता होती है : का भाषा, का दोहरा, प्रेम चाहिए साँचु । रसखान ने भाव-स्तर पर कृष्ण से अपनापा अनुभव किया, यह उनका राग-भाव है जिसके अभाव में काव्य में ऐसी भावनामयता संभव न थी। कृष्णलीला के प्रसंगों में रसखान प्रायः उपस्थित हैं, गोपिकाओं के माध्यम से ही सही। यह भी विचारणीय कि भ्रमरगीत प्रसंग में गोपी-राधा की उक्तियों में महाकवि सूर किस बिंदु पर उपस्थित हैं ? भक्त कवियों ने स्वयं को इनके माध्यम से व्यक्त किया है और वे अपने आराध्य को सीधे भी संबोधित करते हैं। रसखान के लिए कृष्णगाथा के प्रमुख पात्र माध्यम हैं-भावाभिव्यक्ति के लिए। रसखान रचनावली का संपादन करते हुए आचार्य विद्यानिवास मिश्र अपने प्राक्कथन के आरंभ में ही कहते हैं : 'हिंदी कृष्ण काव्यधारा में रसखान का योगदान गुणात्मक एवं विशिष्ट है। उनका कृष्ण-प्रेम धर्म और संप्रदाय की सीमाओं से परे है। वे सच्चे अर्थ में भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि हैं।' रसखान में सांस्कृतिक सौमनस्य का भाव रागात्मक स्तर पर व्यक्त हुआ है। कृष्ण उनके लिए माध्यम हैं, जिनके प्रति समर्पित होकर, वे अपने इस मिलन-भाव को अभिव्यक्ति देते हैं। कृष्ण के रूपचित्र बनाते हुए, रसखान उनकी आकर्षक छवि का बखान बार-बार करते हैं, जिसमें वंशी का योगदान विशिष्ट है। वे रूप के साथ गुण-संपन्न भी हैं-'महाछवि' हैं : 'वह बाँसुरी की धुनि कान परें, कुलकानि हियो तजि भाजति है।' प्रेम के इस संबंध को उच्चतम धरातल पर पहुँचाते हुए, वे उसके अन्योन्याश्रित रूप का वर्णन करते हैं : ब्रह्म मैं ढूँढ़यो पुरानन गानन वेद रिचा सुनि चौगुने चायन देख्यो सुन्यो न कबहूँ न किर्तुं वह कैसे सरूप और कैसे सुभायन टेरत हेरत हारि परयो रसखानि बतायो न लोग लगायन देखौ दुरौ वह कुंजकुटीर मैं बैठो पलोटत राधिका पायन। इस सवैया की कई अर्थ-ध्वनियाँ हैं। यहाँ शास्त्र का अतिक्रमण है कि ब्रह्म जो परम सत्य का प्रतीक है, उसे खोजा-पाया कहाँ जाय ? ग्रंथ इसमें अधिक सहायक नहीं प्रतीत होते क्योंकि वे शब्द-आश्रित हैं। विधाता को सर्वत्र खोजा, तो कबीर ने कहा कि मोकों कहाँ खोजे बंदे, मैं तो तेरे पास में-काबा, कैलाश में नहीं। पर रसखान इसे प्रेमभाव से घनिष्ठ रूप में संबद्ध कर कहते हैं कि विधाता जीव के स्नेह का प्रतिदान करते हैं, प्रेम स्वीकारते हैं : राधा के पैर पलोटते हुए कृष्ण माधुर्य भाव का दृश्य उपस्थित करते हैं। रसखान भक्ति-भाव को उच्च धरातल पर प्रतिष्ठित करते हैं, बिना किसी अन्योक्ति का सहारा लिए। वे सीधी अभिव्यक्ति के कवि हैं, सहजता को अपनाते हुए। सांस्कृतिक सौमनस्य का विस्तार ऐसा कि सामान्य वर्ग की गोपिकाएँ अपने भक्तिकाव्य का स्वरूप / 79
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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