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________________ 1 जा सकते हैं। साधारण पटवारी परिवार में जन्मे रामदास मूलतः रामभक्त हैं, पर अपनी यात्राओं में उन्होंने समाज का जो यथार्थ देखा, उससे वे विचलित हुए । भक्ति की यह सामाजिक परिणति प्रकारांतर से राष्ट्रीय चेतना से जुड़ी हुई है और मध्यकालीन स्थितियों को देखते हुए, रेखांकित करने योग्य है । वे छत्रपति शिवाजी के गुरु थे और कहा जाता है कि उनके प्रेरणा - पुरुष भी । रामदास के 'दासबोध' को विशेष आदर मिला जिसे 'पुरुषार्थ काव्य' कहा गया । यह गुरु-शिष्य संवाद के रूप में रची गई और इसमें राममंत्र की प्रतिष्ठा तथा उपासना - अंगों का विवेचन है । भक्ति के साथ अन्य विषय भी आए हैं- समाज, राजनीति आदि जिसे तत्कालीन प्रभाव के परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। उनकी हिंदी रचनाएँ भी हैं जिनमें जाति-सौमनस्य का भाव है : हिंदु मुसलमान मजहब चले, येक सरजिनहारा / साहब आलम कुं चलावे, सो आलम ही न्यारा । रामोपासना के साथ, धार्मिक सुधार का भाव भी संत रामदास में है । भक्तिकाव्य के समाजदर्शन के संदर्भ में मराठी संतों की चर्चा इस दृष्टि से प्रासंगिक है कि उनका हिंदी भक्ति रचना पर प्रभाव है और उन्हें कबीर ने प्रभावित किया है। इस प्रकार हिंदी - मराठी भक्ति में एक सांस्कृतिक संवाद देखा जाता है । आचार्य विनय मोहन शर्मा, प्रभाकर माचवे आदि ने इस दिशा में प्रारंभिक कार्य किया था, जिसे अन्य विद्वानों ने आगे बढ़ाया। मराठी संतों की हिंदी रचनाएँ सांस्कृतिक संवाद की उनकी इच्छा प्रमाणित करती हैं और मराठी संत-भक्ति साहित्य के समान सूत्र विचारणीय हैं । यहाँ साकार - निराकार की समन्विति स्थिति है, जिसमें सभी जातियाँ सम्मिलित हो सकती हैं। यह भक्ति का सामाजिक पक्ष है, जिसने सामान्यजन, पिछड़ी जातियों, दलित वर्ग को भी प्रभावित किया | मराठी संत कवियों की अपनी संघर्ष - गाथा है, ज्ञानदेव - नामदेव की, जिसे उन्होंने सामाजिक भाव की ओर उन्मुख किया। और जाति-पाँत का विरोध उसका प्रभावी स्वर है । भक्ति की जाति क्या होगी ? इससे उच्च जाति का वर्चस्व टूटता है, पंडित-पुरोहित दुर्बल होते हैं । नामदेव कहते हैं : कहा करउ जाती, कहा करउ पाती / राम को नाम जपउ दिनराती । सामाजिक-सांस्कृतिक आशय से संपन्न कवियों ने वर्ण-वर्ग भेद मिटाने का प्रयत्न किया, जातीय सौमनस्य का आग्रह किया। वे मात्र उपदेशक नहीं हैं, आचरण पर बल देते हैं। उनका कथन है कि कर्मकांड, तीर्थाटन, व्रत सब व्यर्थ हैं, प्रभु तो प्रेम से मिलते हैं | मराठी संतकाव्य की प्रगतिशील दृष्टि का भक्तिकाव्य में विशेष स्थान है और नामदेव की सांस्कृतिक चेतना उल्लेखनीय है। नवीन दलित चेतना इसकी सीमाओं का संकेत करती है, पर इसे स्वीकारना होगा कि संत कवियों की उदार सामाजिक दृष्टि मध्यकालीन सांस्कृतिक चेतना को सौमनस्य की ओर अग्रसर करती है । वे टिप्पणी करते हैं : हिंदू पूजै देहुरा, मुसलमान मसीत / नामे सोई सेविआ, जह देहुरा न मसीत । मराठी संतों का सामाजिक भाव उन्हें समाज सुधारक कोटि में रखता है, परवर्ती दो संतों भक्तिकाव्य का स्वरूप / 69
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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