SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के लिए ईश्वर का अवतरण होता है। भावार्थ रामायण के संकेत विशेष रूप से विचारणीय हैं जिससे एकनाथ की सजगता का आभास मिलता है। बातें प्रतीकों, संकेतों में कही गई हैं; जैसे : 'आत्मप्रबोध लक्ष्मण, भावार्थ भक्ति भरत, आत्मनिश्चय शत्रुघ्न और पूर्ण विग्रह का नाम राम है। दशरथ अहमात्मा हैं और उत्पत्ति के मुख्य कारक भी। श्रीराम का वनगमन इसका अंत है।' इस प्रकार रूपक गढ़ने का प्रयत्न है, जिसका सामाजिक आशय है। एकनाथ की लोकचिंता समय को लेकर है और वे कृष्ण-राम दोनों की प्रतिष्ठा करते हैं। उनके कुछ हिंदी पद भी उपलब्ध हैं, जिसमें आडंबर पर व्यंग्य है : कोई दिन राजा बड़ा अधिकारी, एक दिन होवे कंगाल भिखारी। विद्वान् एकनाथ को परमार्थ का संत कहते हैं जिन्होंने अस्पृश्यता निवारण से समाज-सुधारक का कार्य किया। एकनाथ तथा तुलसीदास समकालीन थे और विद्वानों ने उनमें समानसूत्र खोजने का प्रयत्न किया है (वि. भि कोलते : मराठी संतों का सामाजिक कार्य, पृ. 81)। पंच मराठी संतों में संत तुकाराम (1608-1650), समर्थ रामदास (1608-1682) अंतिम कड़ी के रूप में आते हैं जो छत्रपति शिवाजी (1627-1680) के आदरणीय थे। तुकाराम अपने अभंगों के लिए प्रसिद्ध हैं और उनके कीर्तन भाव ने लोगों को प्रभावित किया। एक ओर उनका आग्रह आत्मशुद्धि पर है तो दूसरी ओर उनके काव्य का सामाजिक पक्ष है, जहाँ नीति, प्रेम-भाव का आग्रह है। तुकाराम गृहस्थ थे और इसी के भीतर वे भक्तिभाव की कल्पना करते हैं। उनका कथन है कि कर्तव्य का पालन करते हुए हरि-भक्ति प्राप्त की जा सकती है। उनकी रचनाएँ कई बार भावाकुल प्रतीत होती हैं, जैसे जीव ईश्वर से संवाद की स्थिति में है। उनके प्रार्थना-भाव को चैतन्य-चंडीदास आदि के साथ रखकर देखा जा सकता है। भावावेग के भीतर से तुकाराम जीवनानुभव को व्यक्त करते चलते हैं और उनका आग्रह 'चित्त की निर्मलता' पर है। वे भक्ति के मार्ग में सब वर्गों को स्वीकारते हुए कहते हैं कि शूद्र, चांडाल, वेश्या को भी इसका अधिकार है। उनके लिए 'भेदाभेद भ्रम अमंगल है' (अभंग 46) क्योंकि सारा संसार ही विष्णमय है। शद्र जाति में जन्मे तुकाराम ने भक्ति को जाति-वर्णहीन बिरादरी के रूप में प्रतिपादित किया, जिसे उनके सामाजिक प्रदेय के रूप में देखा गया है : 'राम-कृष्ण का निरंतर स्मरण करने वाला अन्त्यज, ब्राह्मण से श्रेष्ठतर है।' संत तुकाराम ज्ञानेश्वर-नामदेव-एकनाथ के पांडित्य का दावा नहीं कर सकते, पर उन्हें अपने समय से टकराने का प्रयास करते हुए देखा जा सकता है। भक्ति में वे शूरवीरता का प्रवेश कराते हैं, निर्भयता की शिक्षा देते हैं। वे अपने स्थान तक सीमित रहे, पर उनके अभंगों के वैविध्य ने लोकजीवन में प्रवेश किया और उनके हिंदी दोहों पर कबीर की छाया है।। समर्थ रामदास भी अपने समय की उपज हैं, इस दृष्टि से कि वे भी संत तुकाराम की तरह भक्ति-भाव तक सीमित नहीं हैं और उन पर समय-समाज के दबाव देखे 68 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy