SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अधम । सीता-पक्ष की चर्चा इसलिए कि तुलसी को नारी-निंदक कहने की भूल न की जाय, वह महाकवि की मूल धारणा के प्रति अन्याय होगा । वनवास में सीता का व्यक्तित्व नई दीप्ति पाता है, माता सुनयना से भेंट के समय सीता का चित्र है : सब सिय राम प्रीति किसि मूरति, जनु करुना बहु बेष बिसूरति । अशोक वनवन्दिनी सीता की पीड़ा को त्रिजटा जानती है : राम चरन रति निपुन बिबेका । सीता रावण को खद्योत कहती हैं और उनका निर्भय स्वर है : सठ सूनें हरि आनेहि मोही, निलज्ज लाज नहिं तोही । सीता विलाप करती हैं कि माँ त्रिजटा काठ लाकर चिता बना दो और उसमें आग लगा दो, कहती हैं न आग मिलेगी, न पीड़ा मिटेगी। अशोक से प्रार्थना करती हैं, सुनहि विनय मम बिटप अशोका, सत्य नाम करु हरु मम सोका । अशोक के नए पात अग्नि के समान हैं, सहायक हो सकते हैं: नूतन किसलय अनल समाना, देहि अगिनि जनि करहि निदाना । इस संदर्भ में भवभूति का स्मरण हो आता है, जहाँ सप्तम अंक में सीता पृथिवी माता से प्रार्थना करती हैं कि मुझे अपने अंगों में विलीन कर लो। सीता की इस यातना के समय तुलसी हनुमान का प्रवेश कराते हैं और मुद्रिका देखकर सीता की स्थिति है : हरष विषाद हृदय अकुलानी । हनुमान से उनका वार्तालाप सीता की व्यथा-कथा है जिससे हनुमान भी द्रवित होते हैं । सीता विषादमग्न हैं : वचनु न आव नयन भरे बारी, अहह नाथ हौं निपट बिसारी । राम के संघर्ष पर ध्यान केंद्रित होने के कारण अशोक-वनवंदिनी सीता की व्यथा का मर्म पूरी तरह नहीं समझा जाता, पर वास्तविकता यह कि नारी- पक्ष विचारणीय है । सीता को तुलसी ने सर्वोत्तम नारी प्रतिमा के रूप में गढ़ा है और उन्हें सब माँ, जननी, अंब आदि कहकर संबोधित करते हैं, जो भारतीय नारीत्व का सर्वोपरि रूप है। कैकेयी सीता, कौशल्या का विलोम जैसी प्रतीत होती हैं यद्यपि किसी सीमा तक निर्दोष है क्योंकि देवों ने अपने स्वार्थ के लिए मंथरा का उपयोग किया । राम अयोध्या में रह जाएँगे तो राक्षसों का विनाश कैसे होगा ? पर चक्रवर्ती दशरथ का जो अंतिम समय है, शाप (श्रवणकुमार कथा) उसका एक पक्ष है, पर कैकेयी के प्रति उनकी आसक्ति भी कारण है और यह प्रसंग दशरथ की दुर्बलता दर्शाता है । वे कैकेयी को सुमुखि, सुलोचन, पिकबचनि, गजगामिनी कहकर संबोधित करते हैं, यथार्थ से बेखबर हैं । तुलसी कहते हैं : अस कहि कुटिलि भई उठि ठाढ़ी, मानहु रोष तरंगिनि बाढ़ी, जैसा क्रोध की नदी उमड़ पड़ी हो। राम कैकेयी को माँ कहकर संबोधित करते हैं पर वह सीधा उत्तर नहीं देती : सुनहु राम सबु कारन एहू, राजहि तुम पर बहुत सनेहू । तुलसी ने उसके आत्मघाती निष्ठुर व्यवहार का विस्तृत वर्णन किया है, कौशल्या- सीता आदि के विलोम जैसा: चलइ जोंक जल बक्रगति जद्यपि सलिल समान । पर राम महान हैं और अयोध्याकांड के भरत -मिलन प्रसंग में वे पहले कैकेयी से मिलते हैं। पग पर कीन्ह प्रबोधु बहोरी, काल करम बिधि सिर धरि खोरी । : तुलसी मूलतः ग्राम-समाज और सामान्यजन के प्रवक्ता हैं जिन्हें उन्होंने निकट तुलसीदास : सुरसरि सम सब कहँ हित होई / 191
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy