SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किया है। युद्ध-कौशल भी रत्नसेन जानता है और 'आठ बरस गढ़ छेका रहा' के बाद भी अलाउद्दीन विजयी नहीं हो पाता (राजा-बादशाह युद्ध खंड)। पर वह सहज विश्वास में छला जाता है, बंदी बना लिया जाता है। गोरा-बादल की चतुराई से जब वह मुक्त होता है, तो : चढ़ा तुरंग सिंघ अस गाजा (गोरा-बादल-युद्ध खंड)। पद्मावती के प्रति उसका स्नेह अमिट है : जियत जीव नहि करौ निनारा (बंधन-मोक्ष)। रत्नसेन देवपाल को युद्ध में पराजित करता है, पर बैकुंठवास प्राप्त करता है। रत्नसेन के परिवेश में सामंती वैभव है-दुर्ग, दासी, सेना, संगीत, भोजन आदि, जिनका विवरण भी आया है। पर रत्नसेन को जायसी सामंती सीमाओं से बाहर लाने का प्रयत्न करते हैं और उसे प्रगाढ़ प्रेमी बनाकर अधिक मानवीय भूमि देना चाहते हैं। ___अलाउद्दीन, राघव चेतन, देवपाल आदि वासना-संचालित हैं और उनकी भूमिका रत्नसेन के विलोम रूप में है। गोरा-बादल शौर्य, निष्ठा के प्रतीक हैं, पर पद्मावत में कई दृष्टियों से हीरामन सुग्गे की प्रमुख भूमिका है। पक्षी के रूप में पात्र का चयन नल-दमयंती-प्रसंग में हंस का भी है (श्रीहर्ष : नैषधीय चरित), पर पद्मावत में हीरामन सुग्गा कथा के विन्यास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। वह विवेक-संपन्न है : रूपगर्विता नागमती के यह पूछने पर कि मोरे रूप कोइ जग माहाँ, उसका चतुर उत्तर है कि : जेहि सरवर महँ हंस न आवा, बगुला तेहि सर हंस कहावा तथा लोनि विलोनि तहाँ को कहै, लोनी सोइ कंत जेहि चहै। यह पूरा प्रसंग उसके बुद्धि-कौशल पर प्रकाश डालता है-पहले पद्मावती का रूप-स्मरण आदर-भाव है, फिर नागमती का मुख देखकर हँसना व्यंग्य है, विशेषतया यह टिप्पणी कि जिस जलाशय में हंस (नीर-क्षीर-विवेकी) नहीं आते, वहाँ बगुले (छद्म रूप) ही हंस कहलाते हैं। वह कहता है संसार में एक-से-एक बढ़कर सौंदर्य है, अहंकार न करना चाहिए, इससे पतन होता है। फिर उसका कथन बुद्धिमत्तापूर्ण है कि रानी तुम परिणीता हो, तुम्हारे सौंदर्य की यही सार्थकता है कि पति का प्रेम मिले। जहाँ तक पद्मावती का प्रश्न है, वह प्रसून-सुगंध से संपन्न है। दिवस-रात्रि में क्या समानता ? पद्मावती के रूप-वर्णन में हीरामन की प्रज्ञा कल्पना के साथ संयोजित होकर अपना कौशल दिखाती है, जहाँ लोक से लोकोत्तर के संकेत भी विचारणीय हैं। पूरे कथाचक्र में हीरामन सुग्गे की भूमिका रत्नसेन-पद्मावती-मिलन की है, जिसका निर्वाह वह सात्त्विक कर्तव्य-भाव से करता है। वह ईमानदार, विवेक-संपन्न पथ-प्रदर्शक है और जायसी ने पक्षी को 'मनुष्य की भाषा' दी तथा इस माध्यम से वे जीव-मैत्री का संकेत करते हैं। अपने दायित्व की पूर्ति के बाद वह दृश्य से हट जाता है और पद्मावती की सेवा में सुख मानता है : हीरामन हौ तेहिक परेवा। कंठा फूट करति तेहि सेवा औ पाएउँ मानुष कै भाषा। नाहिं त पंखि मूठि भरि पाँखा। जौ लौं जिऔं रात दिन, सवँरौ ओहि कर नावं मलिक मुहम्मद जायसी : पेम छाँड़ि नहिं लोन किछु / 129
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy