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________________ का संकेत करती, उच्चतर मूल्य-संसार और सौंदर्य से संपन्न। नागमती को दुनिया-धंधा से संबद्ध कर देने से, इस व्यथा-डूबी नारी के साथ न्याय नहीं हो सकता। माना पद्मावती पारसमणि है, अपने अनिंद्य रूप-गुण में अप्रतिम, पर नागमती का अपना पक्ष है, पीड़ा का पक्ष। वह परिणीता है, प्रिय उसे छोड़कर चला जाता है, उसका क्या दोष। प्रिय की प्रतीक्षा में वह बारह मास व्यतीत करती है और पद्मावती को साथ लाने पर भी उसे संतोष कि पति घर आया है। उसका सहपत्नी से विवाद भी होता है, पर रत्नसेन के बंदी बना लिए जाने पर दोनों साथ-साथ विलाप करती हैं। अंतिम क्षणों में नागमती पद्मावती के साथ है, राग-विराग सब दूर। चिता में : लागी कंठ आगि देइ होरी, छार भई जरि, अंग न मोरी। जायसी ने नागमती के पातिव्रत धर्म के लिए ही जैसे 'नागमती-वियोग खंड' की योजना की। बारहमासा तो निमित्त मात्र है, पर कवि का आशय है, नागमती का पक्ष ईमानदारी से प्रस्तुत करना। यहाँ नागमती ऐसी एकनिष्ठ समर्पिता है, जिसके विषय में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है : 'नागमती का विरह-वर्णन हिंदी साहित्य में एक अद्वितीय वस्तु है।' आचार्य शुक्ल ने बारहमासा का विस्तार से विवेचन करते हुए कहा है कि इसमें ‘वेदना का अत्यंत निर्मल और कोमल स्वरूप, हिंदू दांपत्य जीवन का अत्यंत मर्मस्पर्शी माधुर्य है, अपने चारों ओर की प्राकृतिक वस्तुओं और व्यापारों के साथ विशुद्ध भारतीय हृदय की साहचर्य भावना, तथा विषय के अनुरूप भाषा का अत्यंत स्निग्ध, सरल, मृदुल और अकृत्रिम प्रवाह देखने योग्य है' (जायसी ग्रंथावली : भूमिका, पृ. 43)। नागमती यहाँ भारतीय नारी की सहज भूमि पर है, अपने दाम्पत्य भाव से घनिष्ठ रूप में संबद्ध और मध्यकालीन सामंती समय की बहुपत्नी प्रथा पर टिप्पणी करते हुए, जायसी इसका आंरभ करते हैं : नागर काहु नारि बस परा, पर पातिव्रत धर्म में वह अडिग है : पिउ नहिं जात, जात बरु जीऊ। नारी का पक्ष 'बारहमासा' के माध्यम से प्रस्तुत करना जायसी का अभिप्रेत है, जिससे उनके समाजदर्शन का परिचय मिलता है, विशेषतया नारी-दृष्टि का, जहाँ वे सहानुभूति-परिचालित हैं। नागमती वियोग-खंड में नागमती अपनी व्यथा व्यक्त करती हुई अपने स्वामी रत्नसेन को सीधे ही संबोधित करती है : तुम बिनु काँपै धनि हिया, तन तिनउर भा डोल; अबहू मया-दिस्टि करि; नाह निठुर घर आउ; तुम बिनु कंत न छाजनि छाजा आदि। वसंत में प्रिय का स्मरण करते हुए कहती है : बौरे आम फरै अब लागे, अबहुँ आउ घर, कंत सभागे। नागमती का वियोग भारतीय नारी की सहज वेदना है, जहाँ रानी इस दृष्टि से अपना राज-वर्ग भूल जाती है कि उसके विलाप में साधारण नारी का स्वर है। पूरा प्रसंग यदि एकालाप होता तो नारी पक्ष अधूरा रह जाता, पर जायसी ने नागमती को मध्यकालीन नारी के प्रतिनिधि स्वर-रूप में चुना, जिसे बहुपत्नी प्रथा की पीड़ा से गुजरना था। इस दृष्टि से यह वियोग-प्रसंग सामाजीकृत होता है, जिसमें पशु-पक्षी भी सम्मिलित हैं जो नारी-पीड़ा को बहुत करुण बनाते 124 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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