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________________ थाहा (राजा-गजपति-संवाद खंड) से लेकर प्रेम-कथा एहि भाँति बिचारह (उपसंहार) तक। जायसी का गहरा आत्मविश्वास मानवीय प्रेम पर आश्रित है, जिसके केंद्र में लोक-संवेदन हैं और जिसकी उच्चतम भूमिका मानवमूल्य-संपन्न आध्यात्मिकता तक जाती है और जिसे कवि पद्मावत में मार्मिक प्रतिपादन दे सका : केइ न जगत अस बेंचा, केइ न लीन्ह जस मोल । जो यह परै कहानी, हम्ह सँवरै दुइ बोल ।। जायसी का व्यक्तित्व कुछ कठिनाइयाँ उपस्थित करता है, जिनका समाधान खोजना होगा। जीवन-रेखाओं के विवाद को छोड़ दें, क्योंकि वे प्रायः सभी भक्त कवियों के साथ किसी न किसी रूप में जुड़े हैं, जिन पर शोधकर्ता अपने ढंग से विचार करते रहे हैं, पर कुछ प्रश्न सामने हैं। जायसी में सूफ़ी दर्शन किस सीमा तक तथा किस रूप में आया है और ऐसा तो नहीं कि दर्शन अथवा विचार ने काव्य को बोझिल अथवा विरस किया है। कवि ने अपनी प्रतिभा से इनका संयोजन किस प्रकार किया है। यह प्रश्न इसलिए भी विचारणीय कि हर महत्त्वपूर्ण रचना से इसका संबंध है। रचना न कोरी भावुकता है, न केवल बौद्धिक व्यापार, वरन् इनके संतुलित संयोजन से उसका निर्माण होता है। जहाँ भाव की प्रमुख उपस्थिति होती है, जैसे रूमानी कवियों में, वहाँ भी कुछ विचार-बिंदु अंतःसलिला की भाँति प्रवाहित होते हैं। सब कुछ मिलकर काव्य-संवेदन बनता है, जिससे कवि-क्षमता का प्रमाण मिलता है और जायसी के संदर्भ में यह प्रश्न सर्वाधिक प्रासंगिक है। पद्मावत प्रबंधकाव्य है, जहाँ एक ऐसी घटना का संकेत है, जिसके लिए इतिहास का हवाला दिया जाता है। इसलिए इतिहास-कल्पना के संयोजन का निर्वाह जायसी ने किस प्रकार किया, यह भी विचारणीय है। यों इतिहास, रचना में विवरणों में नहीं आता और रचनाकार अपनी सर्जनात्मक कल्पना की क्षमता से चरित्रों को, समय के अनुरूप नया विन्यास देते हैं। शेक्सपियर का जूलियस सीज़र अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार है और प्रसाद का चाणक्य बुद्धि-वैभव-संपन्न तो है ही, वह विरल प्रेमी भी है : 'समझदारी आने पर यौवन चला जाता है। जायसी ने पात्रों को किस रूप में गढ़ा, यह भी जानने योग्य है। राजा रत्नसेन के माध्यम से कवि कहना क्या चाहता है और दो-दो नारियों को कथा-धार में सम्मिलित करने का आशय क्या है ? योग से संबद्ध शब्दावली, प्रतीक, रूपककाव्य में अंतर्भुक्त करने का प्रयत्न, कौन-सी विवशता है ? इससे कथा-प्रवाह में कुछ बाधाएँ भी उपस्थित हुई हैं। पद्मावत के उपसंहार की चौपाइयों ने नई समस्याएँ उत्पन्न की : तन चितउर, मन राजा कीन्हा, हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा। पूरा अन्योक्ति क्रम है : तन चित्तौड़, मन राजा रत्नसेन, हृदय सिंहल द्वीप, बुद्धि पद्मिनी-पद्मावती, गुरु हीरामन सुग्गा, नागमती दुनिया-धंधा, राघव शैतान, अलाउद्दीन माया। आचार्य शुक्ल की ग्रंथावली में यह अंश है, पर डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने अपने संपादन में इसे छोड़ 114 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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