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________________ [ ७ ] योगसार के कर्ता श्रीमद् योगीन्दु देव | । जैन साहित्य में ओ योगीन्दु देवका बहुत ऊँचा स्थान है । उनने उच्चकोटिकी रचनाओंमें प्रयुक्तकी जानेवाली संस्कृत तथा प्राकृत भाषाको छोड़कर उस समयकी प्रचलित भाषा अपभ्रंशको अपनाया और उसीमें अपने ग्रंथ निर्माण किये थे । प्राचीन ग्रंथकाने जो कुछ संस्कृत और प्राकृत में लिया था उसे ही योगीन्दवने बहुत सरल ढंगसे अपने समयकी प्रचलित भाषामें गृधा था। योगीन्दुदेवने श्री कुन्दकुन्दाचार्य और श्री वज्यवाद बहुत कुछ लिया था । यह बड़े ही दुःखकी बात है कि जोइन्दु ( योगीन्दु ) जैसे महान अध्यात्मवेत्ताके जीवन के सम्बंध में विस्तृत वर्णन नहीं मिलना । नसागर उन्हें भट्टारक लिखते हैं, किन्तु इसे केवल आदर सूचक शब्द समझना चाहिये। उनके ग्रंथों में भी उनके जीवन तथा स्थानके बारमें कोई उल्लेख नहीं मिलता। उनकी रचनायें उन्हें आध्यात्मिक राज्यके उन्नत सिंहासनपर बिराजमान एक शक्तिशाली आत्माके रूप में चित्रित करती हैं। वे आध्यात्मिक उत्साह के केन्द्र हैं । " परमात्मप्रकाशमें उनका नाम जोइन्दु आता है। श्री०जय सेनने “ तथा योगीन्द्रदेवैरायुक्तम" करके परमात्मप्रकाशसे एक पत्र उद्धृत किया है। ब्रह्मदेवने अनेक स्थानोंपर ग्रंथकारका नाम योगीन्द्र लिखा है । " योगीन्द्रदेवनाम्ना भट्टारकेण " लिखकर श्री श्रुतसागर एक पय उद्धत करते हैं। कुछ प्रतियों में योगेन्द्र भी पाया जाता है। इसप्रकार उनके नामका संस्कृतरूप 'योगीन्द्र' बहुत प्रचलित रहा है शब्दों तथा भावकी समानता होनेसे योगसार भी 'जोइन्दु' की रचना माना गया है। इसके अन्तिम पयमें मंथकारका नाम
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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