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योगसार टीका ।
[ ३५१ परमात्माने सर्व कमको भस्म कर डाला है। दूसरा कोई लोकसंहारक रुद्र नहीं है न दूसरा कोई लेोकवि है। ही सवा कुछ है, क्योंकि वही सर्व तत्वोंका यथार्थ ज्ञाता है । और कोई बौद्धों मान्य बुद्धदेव यथार्थ सर्वज्ञ परमात्मा नहीं है ।
वही यथार्थ जिन हैं क्योंकि उसने रागादि शत्रुओंको व ज्ञानावरणादि कर्म-रिपुओंको जीत लिया है। और कोई यथार्थ जिना या विजयी नहीं है, यही ईश्वर है. क्योंकि अविनाशी परमैश्वर्यका धारी वही परमात्मा है जो परम कृतकृत्य व संतोपी है, सर्व प्रकारकी इच्छासे रहित है | वही परमात्मा सचा ब्रह्मा है, क्योंकि यह ब्रह्मस्वरूप में लीन हैं । अथवा वह अपने स्वरूपसे यथार्थ मोक्षका उपाय बताता है। वही धर्मका कर्ता है। उसके हो स्वरूपके ध्यानले संसारी आत्मा परमात्मा होजाता है । और कोई जगतकर्ता ब्रह्मा नहीं हैं । यही परमात्मा अनंत है क्योंकि वह अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख, अनंत वीर्य, अनंत शांति, अनंत सम्यक्त आदि अनंत गुणका धारी है । उसीको सिद्ध कहते हैं; क्योंकि उसने साध्यको सिद्ध कर लिया है । संसारीको शुद्ध स्वरूपकी प्राप्ति सिद्ध करनी है । उसको वह प्राप्त कर चुका है ।
परमात्मा यथार्थ स्त्ररूपके प्रतिपादक हजारों नाम लेकर भावना करनेवाला भावना कर सक्ता है। नाम लेना निमित्त हैं। उन नामांक निमित्त से परमात्माका स्वरूप ध्यानमें यथार्थ हो आना चाहिये । परमात्मा वास्तव में जैन सिद्धांतमें सिद्ध भगवानको कहते हैं। जो परम शुद्ध हैं, उनकी आत्मा में किसी परद्रव्यका संयोग नहीं हैं, न वहां ज्ञानावरणादि आठ कर्म हैं न रागादि भाव कर्म हैं न शरीरादि नोकर्म है, शुद्ध स्फटिकके समान निर्मल है । ज्ञातादृष्टा स्वभाव से है तथापि प्रशंसा किये जानेपर प्रसन्न नहीं होता है ।