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________________ - - - - - - . - . . - . . . . - - - ILLLLL ३५०] योगसार टीका - आत्माके ध्यान में ही पांचों परमेष्ठीका ज्यान गर्भित है । शरीरादिको क्रियाको न च्यानमें लेकर केवल उनके आत्माका आराधन निश्चय आराधन है । समयसार कलशमें कहा है.-- दर्शनज्ञानचारित्रत्रयात्मा तत्त्वमात्मनः । एक एव गदा सेन्यो मोक्षमार्गो मुमुक्षुणा ॥६-१०॥ भावार्थ-आस्माका स्वरूप सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्रमई एकरूप ही है, यही एक मोक्षका मार्ग है | मोक्षके अर्थीको उचित है कि इसी एक स्वानुभवरूप मोक्षमार्गका सेवन करें। -.. - .. ---- आत्मा ही ब्रह्मा विष्णु महेश है । सो सिउ संकरु विण्ड सो सो रुद्द वि सो बुद्ध । सो जिणु ईसरु बंभु सो सो अणंतु सो सिद्ध ।। १०५॥ अन्वयार्थ-( सो सिउ संकर विण्हु सो) यही शिव हैं, शंकर हैं, वही विष्णु हैं ( सो रुद्द वि सो बुद्ध ) वही रुद्र हैं, वहीं बुद्ध हैं ( सो जिणु ईसरु बंभु सौं) बद्दी जिन हैं, ईश्वर हैं, वही ब्रह्मा हैं ( सो अणंतु सो सिद्ध ) बही अनंत हैं, वहीं सिद्ध हैं। भावार्थ--जिस परमात्माका ध्यान करना है, उसके अनेक नाम गुणवाचक होसकते हैं वही शिव कहलाता है । क्योंकि वह कल्याणका कर्ता है । उसके ध्यान करनेसे हमारा हित होता है । वही शंकर कहलाता है, क्योंकि उसके ध्यान करनेसे आनंदका लाभ होता है, दूसरा कोई लौकिकजनोंसे मान्य व पूज्य शिव-शङ्कर नहीं है। वहीं विन्यु कहलाता है, क्योंकि वह केवलज्ञानकी अपेक्षा सर्व लोकालोकका नाता होनेसे सर्वव्यापक है, दूसरा कोई लौकिकजनोंसे मान्य यथार्थ विष्णु नहीं है। वही रुद्र या महादेष है, क्योंकि उस
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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