SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२] योगसार टीका। निमित्त होनेपर निश्चय सम्यग्दर्शन आत्माकी ही भूमिकासे उपज जाता है। आत्मा ही उपादान कारण है। आत्माका आत्मारूप यथार्थ ज्ञान निश्चय सम्यग्ज्ञान है । आगम द्वारा तत्वौंका व द्रव्योंका मनन व्यवहार सम्यम्ज्ञान है, निमित्त है | आत्माके अभ्यासम व गुरुक. उपदेशके निमित्तमे भीतर उपादान आत्मास ज्ञानका प्रकाश होता है । अंतरंग विभिन्न बानावर्णीय व दर्शनावणीय व अंतरंग कर्मका क्षयोपक्षम है। आत्माका आत्माकं भीतर आत्माके द्वारा ही परके आलम्बन रहित रमण करना निलय सम्यकचारित्र है। निमित्त साधन अंतरंग चारित्र मोहनीय कमका उपशम है, बाहरी साधन श्रावकका एकदेश व साधुका सकल चारित्र है । आत्मानुभत्र ही तीर्थ है, जहाज है, वह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यकूचारित्र तीन आत्मीक धर्मोंसे रचिन है। इस जहाजपर जो आत्मा आप ही चढ़कर उस जहाजको अपने ही आत्माम्पी समुद्रपर चलाता है वह आप ही मोक्षद्वीपको पहुंच जाता है। वह द्वीप भी आप ही है, अपना पूर्णभात्र' कार्य हैं, अपूर्णभाव कारण है। इस तरह जो कोई निश्चिन्त होकर आत्माका सतत अनुभव करता है यही परमानन्दका स्वाद पाता हुआ व कर्मोंका संरर व उनकी. निर्जरा करता हुआ उन्नति करता जाता है, यही कर्तव्य है । तत्वार्थसारके उपसंहारमें अमृतचन्द्राचार्य कहते हैंनिश्चयव्यवहाराभ्यां मोक्षमार्गों द्विधा स्थितः । तत्रायः साध्यरूप: स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम् ॥२॥ श्रद्धानाधिगमोपेक्षा; शुद्धस्य स्वात्मनो हि याः । सम्यक्त्वज्ञानवृत्तात्मा मोक्षमार्गः स निश्चयः ॥ ३ ॥
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy