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________________ योगसार टीका । २७५ जिनमें विषयभोगमें हानि पड़ती है व जो विपन कचते नहीं है, उनमें द्वेष करना है । पागदपके चार प्रकार - चार पाय नी नोकपायमें लोभ, मानकपायको व हास्य, गति, म्नांवेद, वेद, नपुसकवंद इन पांच नोकपायको राग कहते हैं | तथा कोच व मानकपायको त्र अगति, शोक, भय, जूगुप्ता चार नोकषाबको उप कहते हैं | अनन्तानुबंधी सम्बन्धी गगढेप, अप्रत्याख्यान कपाय सम्बंधी संगइप, प्रत्याख्यान सम्बन्धी रागदेष संचलन सम्बन्धी गगद्रप इस तरह रागद्वपके चार मैन हैं। मिथ्यात्त्र व अननानुबंधी मापके मिटाने के लिये सम्यग्दशगका लाभ जरूरी है। इस सम्बनके पानेका उपाय अपने आत्मा यथार्थ स्वभावका ज्ञान है कि ग्रह आत्मा मानदशन स्वभावका चार है. सूर्यक समान पर प्रकाशक है, सर्वज्ञ व पत्र दर्शी है, पूण चीनराग है, पूण आनंदमय हैं, स्वयं परमा-मामप्र है, आट कम, गोगादि भावक्रम, शरीरादि गोकर्मम्मे भिन्न है । अनन्न्यि सुख ही समा सुख है, ऐसी नीति लाकर वाग्वार अपने ज्ञान दर्शन स्वभावधारी आत्माकी भावना करते रहनेम मियान्त्र व अनंतानुधंधी कगायका उपशम. भयोपशमका क्षय होजायग! | नब यह जीव सम्यग्दर्शन गुणको प्रकाश कर सकेगा, मदता चली जायगी, सम्यम्ज्ञान होनायगा | सब इमे निर्वाणपदपर पहुंचनेकी योग्यता होजायगी, मंसारमागरमें पार होनेकी नीत्र कचि होजायगी । बारह प्रकार कपाथ व नौ नोकषायका उदय अभी है, इमलिये चारित्रमें कमी है | अविग्न सम्यकदृष्टीक इकीस प्रकार चारित्र मोहनीयके उद्यमे रग द्रुप होजाता है उसको वह गेग आनता है। आत्मबलको कमीम गृहस्यक योग्य विषयभोग करता है व धर्म, अर्थ, काम, पुस्पाय सेवन करता है। परंतु इकदम मन, वचन, कायकी
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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