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________________ यायसार टीका। [२३७. छिलका दूर होनेपर अन्तरङ्गका पतला छिलका दूर होता है । साधकको पहले तो मिथ्यात्व भात्रका त्याग करना चाहिये । इसके लिये बाहरी कारण रागीद्वेषी देवोंकी, परिग्रहधारी अन्य ज्ञान रहिन साधुओंकी व एकांतमयमें बहनेवाले शास्त्रोंकी भक्तिको छोड़े, व तीत्र पापोंमे बचे । दूतरमण, मदिरापान, मांसाहार, चोरी, शिकार, बन्या व परस्त्री सेवनकी रुचिको मनसे दूर करे, नियमपूर्वक त्याग न कर सकने पर भी इनसे अरुचि पैदा करे, अन्याय मेवन ग्लानि करे तथा बीतराग सर्वज्ञ देव, निम्रन्थ आत्मज्ञानी साधु, अनेकांतसे कहनेवाले शास्त्रोंकी भक्ति करे । सात तत्वको जानकर मनन करे नब अनन्तानुबन्धी कषायका व मिथ्यात्व भात्रका विकार भागांना होगा। सम्यग्दर्शन व खम्यग्ज्ञान व स्वरूपाचरण चारित्रका लाभ होगा । फिर भी अपसाख्यान, प्रसाख्यान व संज्वलन कषाय व नोकपायके उदयसे होनेवाले रागहप भावोंको मिटाता है । तब पहले श्रावकके बारह व्रतोंकी पालकर रागदप कम करता है । ग्यारह प्रतिमाओं या श्रेणियोंके द्वारा जैन जैस बाहरी त्याग करता जाता है, रागद्वेष अधिक २ कम होता जाता है। पूर्ण रागद्वेपके त्याग करनेके लिये साधुकी दीक्षा आवश्यक है, जहां वस्त्रादिका पूर्णपने त्याग होता है । साधु होते हुए. खेत, मकान, धन, धान्य, चांदी, मोना, दासी, दास, कपड़े, वर्तन इन दश प्रकार के बाहरी परिमहको त्यागकर बालकके समान समदशी, काम विकारसे रहित निग्रंथ होजाता है । अंतरंग चौदह प्रकारके भाव परिग्रहसे ममता त्यागता है। मिथ्यात्वभाव, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति,. शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसक वेद, इन १४ तरहके 'भावोंमे पूर्ण विरक्त होजाता है। शत्रुमित्रमें, तृण व सुवर्णमें व जीवन
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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