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________________ योगसार टीका। परम योगी-श्री कुन्दकुन्दाचार्यजीने भी समयसार अन्धकी आदिमें सिद्धोको ही नमस्कार किया है। वे कहते हैं--- वंदित्तु सव्व सिद्धे धुक्ममलमणोवमं गदि पते । वोच्छामि समय पाहुड़ मिणमो सुदकेवली भणिद ॥१॥ भावार्थ-नित्य, शुद्ध, अनुपम, सिद्धगतिको प्राप्त, सर्व सिद्धोंको नमन करके मैं श्रुतकेवली कथित समय प्राभृतको कहूंगा। योगेन्द्राचार्यने परमात्मप्रकाश ग्रंथको प्रारम्भ करते हुए इसी तरह पहले सिद्धोंको ही नमन किया है। जे जाया झाणग्गियाए, कामकलंक डहेवि । णिच्च जिरंजन णाणमय ते परमप्प णवेवि ॥ १ ॥ भावार्थ-जो ध्यानकी आगसे कर्म-कलंकको जलाकर नित्य, निरंजन, नथा ज्ञानमय होगये हैं, उन सिद्ध परमात्माओंको नमन करता हूं। श्री पूज्यपादस्वामीने भी समाधशतकको प्रारम्भ करते हुए. पहले सिद्ध महाराजको हो नमन किया है । येनात्मा बुभ्यतास्मैच परत्वेनैव चापरम् । अक्षयानन्तबोधाय तस्मै सिद्धात्मने नमः ॥ १ ॥ भावार्थ-जिसने अपने आस्माको आत्मारूप व परपदार्थको पररूप जाना है तथा इस भेद विज्ञानस अक्षय व अनन्त कंवलज्ञानका लाभ किया है, उस सिद्ध परमात्माको नमस्कार हो । श्री देवसेनाचार्य ने भी तत्वसारको प्रारम्भ करते हुए सिद्धोंको ही नमस्कार किया है। झाणग्गिदड़कम्मे णिम्मलविसुद्धलद्धसन्माने । प्रमिऊण पमसिद्धे सु तबसारं फ्वोच्छामि ॥ १ ॥
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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