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________________ ११२ पंगसाधना। मैं भी आठों मदोंसे रहित पूर्ण निरभिमानी च परम कोमल मार्दव भारका धनी हूं। सिद्ध भगान मायाचारकी यकतासे रहित परम सरल सहज आर्जव गुण धारी हैं, मैं भी कपट-जालसे शुन्य परम निष्कपट सरल आर्जव स्वभाव धारी हूं। सिद्ध भगवान् असत्यकी वक्रतासे रहित परम सत्य अमिट एक स्वभावधारी है । मैं भी सर्व असत्य कल्पनाओंसे रहित परम-पवित्र सत्य शुद्ध धर्मका धनी हूं | सिद्ध भगवान लोभके मलसे रहित परमपवित्र शौच गुणके धारी हैं; मैं भी सर्व लालसासे शुन्य परम सन्तोपी व परम शुद शौच स्वभावका स्वामी हूं। सिद्ध भगवान् मन व इन्द्रियोंके प्रपंचसे व अद्याभावसे रहित पूर्ण संयम धर्मके धारी हैं, मैं भी मन व इन्द्रियोंकी चञ्चलतासे रहित व परमस्वदयाल पृण परम संवम गुणका धारी हूं। सिद्ध भगवान आपसे ही अपनी स्वानुभूतिकी तपस्याको निरंतर तपते हुए परम तप धर्मके धारी हैं । मैं भी स्वात्माभिमुख होकर अपनी ही स्वात्मरमणताकी अनिमें निरन्तर आपको तपाता हुआ परम इच्छा रहित तप गुणका स्वामी हूं | सिद्ध भगवान परम शांतभावसे पूर्ण होते हुए व परम निर्भयताको धारते हुए विश्व में परम शॉति व अभय दानको विस्तारते हुए परम त्याग धर्मके धारी हैं | मैं भी सर्व विश्वमें चन्द्रमाके समान परम शांत अमृत वर्षाता हुआ व सर्व जीवमात्रको अभय करता हूं, परम त्याग गुणका स्वामी हूं। - सिद्ध भगवान एकाकी निस्पृह निरंजन रहते हुए परम आकिंचन्य धर्मके धारी हैं, मैं भी परम एकांत स्वभावमें रहता हुआ व परके संयोगसे रहित परम आकिंचन्य गुणका स्वामी हूं । सिद्ध भगवाम् परमशील स्वभावमें व अपने ही ब्रह्मभावमें रमण करते हुए परम ब्रह्मचर्य धर्मक धारी है। मैं भी अपने ही शुद्ध शील स्वभावमें
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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