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योगसार टीका। __चौदह गुणस्थान स्वरूप(१) मिथ्यात गुणस्थान
मिच्छोदयेण मिच्छत्तमसहहणं तु तच्च अत्थाणं । एयंत विवरीयं विणयं संसदिमण्णाम् ॥ १५ ॥
भावार्थ--मिथ्यादर्शन कर्मके उदयले मिथ्यात्व भाव होता है तब तत्वोंका व पदार्थोंका श्रद्धान नहीं होता है, उसके पांच भेद हैं। एकांत (अनेक स्वभावोंमेंसे एकको ही मानना), विपरीत, विनय, संशय, अज्ञान | (२) सासादन गुणस्थान--
आदिमसम्मत्तद्धा समयादो छावलित्ति वा सेसे । अणअण्णदरुदयादाणा सियसम्मात्ति सासखो सो ॥१०॥
भावार्थ-उपशम सम्यक्त के अनमुटूत कालके भीतर जब एक समयसे लेकर छ: आरली काल शेप रहे तम अनंतानुबन्धी चार कषायों में किसी एक उदयसे सम्यक्तमे छूट कर मिथ्यात्त्रकी तरफ गिरता है तब नीवमें सासादन भाव होता है | (8) मिश्र गुणस्थान--
सम्माभिमुहुदोण य जत्तरसव्वघादिकजग । ॥ य सम्म मिच्छपि य समिम्मो हदि परिणाम ॥ २१ ।।
भावार्थ-जात्यंतर सर्व घाति सम्बग्मिथ्यात्व प्रकृतिक उदयसे न तो सम्यक्तकं भाव होते हैं न मिथ्यात्त्रके, किन्तु दोनौके मिले हुए परिणाम होते हैं। (४) अविरत सम्यक्त गुणम्यान--
सत्ताहूं उयसमदो उबससमम्मो ख्यादुः खइओ य । निदियकसायुद्धयादा असंजदो होदि सम्मो य ॥ २६ ॥