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___ मन ने उरर निकले हुए अण्डे को ठयावश इसे बढ़ाओ' यह कहकर भीलनी के लिये दे दिया। भीलनी के द्वारा बढ़ाया हुआ वह अण्डा सुन्दर विच्छिों को नृत्य के द्वारा गोल करने वाला मयूर हो गया ।।३६ ।।
___ माता चन्द्रमती मी मर कर करहाट नगर में कुत्ता हुई। भाग्यवश वह मयूर और कुता दोनों ही यशोमति राजा को भेंट में प्राप्त हुए ।।३७ ।।
जिस घर में वे दोनों राजा यशोथर और चन्द्रमती माता, समस्त पृथिवी तल के विशाल राज्य का उपभोग करते थे तथा लोग उन्हें प्रेम से देखते थे उसी घर में वे अब बिष्टा के कीटसमूह के कष्टमय भोजन का उपभोग करते थे। ठीक ही है क्योंकि संसार में कर्म का बिपाक दुजेय है।।३८ ।।
तदनन्तर एक दिन उस मयूर ने अपने महल में अपनी स्त्री को जार के साथ उपभोग करते देखा। पूर्वभव के स्मरण से उसे क्रोध आ गया और उसने चोंच से जार की आंख फोड़ दी।।३६ ।।
अमृतमती ने उस मयूर के भरतक पर जोरदार प्रहार किया जिससे वह पीड़ा सहित पृथिवी पर गिर पड़ा। पृथिवी पर पड़े हुए उस घायल मयूर को उस कुत्ते ने झपट कर खा लिया जो पूर्वजन्म में चन्द्रमती था।।४0 1।
राजा यशोमति को उस प्रिय मयूर का विघात बिल्कुल ही सहन नहीं हुआ इसलिये उसने पासा खेलने के एक बड़े पटिया से उस कुत्ते को मार डाला ।।४।।
___ मयूर और कुत्ता दोनों को मरा देख राजा अधिक शोक को प्राप्त हुआ। ठीक ही है क्योंकि बड़े घुरुष दचालु होने के कारण आश्रित जनों पर किये गये क्षुद्रता-हीन व्यवहार को सहन नहीं करते हैं।।४२।।
विन्ध्याचल के समीप एक बड़ा वन हैं जिसमें हाथी, सिंह तथा शरभ अष्टापद आदि नियास करते हैं; उसी वन में वह मयूर मर कर तीक्ष्ण कादों के अग्रभाग से युक्त सेह्रीं हुआ।।१३।।
और वह कुना भी मरकर उसी वन में काला साप हुआ। पूर्व चैर से कुपित सेट्टी ने किसी समय उस सांप को पकड़ कर मार डाला ।।४४ ।।
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