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जो भीतर ही भीतर मानों कुछ शब्द कर रहा था तथा जिसका मस्तक कट चुका था ऐसे गिरते हुए मुर्गे को देख कर वह तलवार की मूठ छोड़ शोक करने लगा। टीक ही है क्योंकि सचमुच ही अविवेक सत्पुरुषों को क्लेश करने याला होता है ।
हाय-हाय! मैं अमृतपती स्त्री के द्वारा मारा गया। हाय-हाच! मैं माता की विनय से मारा गया। हाय-हाय! मैं चिरकाल तक नरक में निवास को प्राप्त हो गया। हाय-हाय! मैं जो जीता न जा सके ऐसे भवबन्ध को प्राप्त हो गया।२।।
कहा यह कृत्रिम पक्षी और कहा वह तलवार के घात से रोने का शब्द? खेद है कि यह दुर्गति रूपी वधू इस छल से मानों निश्चित ही मुझे बुला रही है।।२६।।
जो इस प्रकार विचार कर रहा था, जिसके नेत्र आसुओं से परिपूर्ण थे तथा जिसकी बुद्धि भोगों से निःस्पृह थी ऐसे राजा यशोधर ने राजमहल में आकर अपने पुत्र के लिये राज्यलक्ष्मी सौंप दी 1।३०।।
तप के सन्मुख राजा यशोधर से कुलटा अमृतमती यह वचन बोली कि हे आर्यपुत्र! आपको छोड़कर मुझे घर में संतोष क्या है? अर्थात् कुछ भी नहीं है।।३१।।
आज आप अपने श्रेष्ट पुत्र नवीन राजा यशोमति को पृथिवी पर स्थापित कर रहे हैं इसलिये मेरे घर में अमृतमय भोजन कर पश्चात् मेरे साथ वन जाने के योग्य हैं।।३२ ।।
राजा यशोधर उसके अन्तरङ्ग को जानते हुए भी माता के साथ उसके घर भोजन करने के लिये चले गये ।।३३ ।। ___माता और पुत्र दोनों ही उसके द्वारा बनाये हुए उन विषमय लड्डुओं से जो मधु से लिप्त थे तथा रुचिवश अधिक खाये गये थे, आर्तध्यान करते हुए मरण को प्राप्त हो गये ।।३४।।
राजा यशोवर विन्ध्याचल पर एक मयूरी के गर्भ में निवास को प्राप्त हुआ। वह मयूरी जब निकले हुए अण्डे का पालन कर रही थी तब याण के द्वारा मारी गयी ।।३५ ।।