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तलवार से शत्रु रूपी हाथियों को विदीर्ण करने वाला वह यशोधर पराक्रम की अपेक्षा पूर्ण सिंह था परन्तु सौन्दर्य की निवासभूमि स्वरूप शरीर के द्वारा 'सिंहमध्य' सिंह का मध्य भाग ( पक्ष में सिंह के समान पतली कमर झाला होता हुआ पृथिवी में कीर्ति को प्राप्त हुआ था | ६ ||
समस्त उत्तम गुणों से सहित उस यशोधर का न तो कोई गुण मध्यम था और न कोई गुण जघन्य था इसीलिये कामवती स्त्रियाँ उन गुणों से उसमें तृप्ति को प्राप्त नहीं हुई थीं ।। १० ।।
उसके दोनों पैर संस्कार विशेष से सुशोभित नूतन पद्मराग मणि थे अतः वह गुणों के द्वारा जो राजाओं के चूड़ामणित्व को प्राप्त हुआ था इसमें आश्चर्य की क्या बात थी । । ११ ।।
राजा यशोथर की अमृतमती नामकी वह रानी थी जिसका शरीर चन्द्रमा के रस से ही मानों निर्मित हुआ था। उसी अमृतमती को नाली बनाकर कामदेव निरन्तर यशोथर के मन का स्वाद जानता था । | १२ |
उस यशोधर ने अमृतमती रानी के द्वारा यश रूपी अमृत से समस्त लोक को संतुष्ट करने वाले यशोमति नामक पुत्र को उस तरह उत्पन्न किया जिस तरह कि इन्द्र ने इन्द्राणी के द्वारा जयन्त नामक पुत्र को उत्पन्न किया था ( यह लौकिक दृष्टान्त हैं) यशोमति राजा यशोध का पौत्र था | १३ ||
अपने ही समान संपदा तथा गुणों से युक्त उस उत्कृष्ट युवा पुत्र पर समस्त राज्य का भार सौंप कर निराकुलचित राजा यशोध विरागभाव से चिरकाल तक राज्यलक्ष्मी का उपभोग करते रहे । । १४ ।।
तदनन्तर एक दिन राजा यशोध राजसभा में बैठे थे, अनेक राजा उनकी सेवा कर रहे थे। उसी समय उस भव्य राजा ने दर्पण में अपने सफेद बाल देख कर विषय - तृष्णा को नष्ट कर दिया ।। १५ ।।
राजा यशोध प्रबल पराक्रमी यशोवर के लिये शीघ्र ही पृथिवी का राज्य देकर विरक्ति भाव को प्राप्त सौ राजाओं के साथ तपोवन को चले गये । । १६ ।।
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