________________
द्वितीय सर्म शक्तिसंपन्न अवन्तिदेश में मनोहर भोर्गो से जगत् प्रसिद्ध उजयिनी नाम की नगरी है जो अपनी समृद्धि से इन्द्र की भी वैभवशासिनी राजधानी को बुलाती है - ललकारती है।।१।।
उस उज्जयिनी में अनेक युद्धों के बीच अहंकारी शत्रुओं को नष्ट करने से प्रकटित, पराक्रम लक्ष्मी से सहित, यशोघ नाम का नीतिन राजा थाIRII
जिस कारण वह कुमुद के समान उज्ज्वल यश को दिशाओं की दीवाल में बद्धलेप करता था इसलिए 'पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम्' इस सूत्र में कक्ति व्युत्पत्ति के ज्ञाता कवि उसे यशोघ कहते थे।।३। ____ जो हरिचन्दन-लालचन्दन की चर्चा के समान एकान्त में क्वस्वत पर संलग्न रहती थी तथा जिसका राग-स्नेह (पञ्च में लाल वणी बढ़ा हुआ था ऐसी चन्द्रमुखी चन्द्रमती रानी निरन्तर उसके बहुत भारी कम्मसंताप को इरती थी।।४।।
उन दोनों के नीति और पराक्रम से अनुपम यशोधर नापका वह सुपुत्र हुआ जो कि दिशाओं में वीरसमुद्र की तरङ्गमाला के समान सफेद यश के प्रकाश को धारण करता था।।५।। ___फिर से हमारा क्षय न हो जाय' इस भय से दुखी होकर ही मानों शरद ऋतु के चन्द्रमण्डल की कान्ति, उसे छोड़ कर अविनाशी लक्ष्मी के घर स्वरूप उस यशोधर पुत्र के खिले हुए नेत्ररूपी नीलकपों से युक्त मुख में रहने लगी थी।।६।।
महातेजस्वी यशोधर का मोतियों की हरयष्टि से सुशोभित चैमा वयस्कत, ऐसा सुशोभित हो रहा था मानों उसके भीतर रहने वाली लक्ष्मी के संभोग सम्बन्धी हास्य की कान्ति से ही युक्त हो।७।।
उसकी सर्प के समान लम्बी और मोटी वे मुजाए जो कि युद्ध सम्बन्धी पराक्रम के मानों दो शरीर ही ये त्रु राजाओं के देशों को ग्रसने के लिए राष्ट्र और केतु के समान थीं ।।।
→ १७ 4