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मह दुःख समस्त तत्त्वों का साक्षात्कार करने वाले जिनेन्द्र भगवान ने ही नहीं कहा है किन्तु उस-उस समय हजारों दुःखों से दुखी हम लोगों ने इसका अनुभव भी किया है।।६०।।
इसलिए हमारा यह चरितरूपी अमृत समस्त दोषों के नाश का कारण है। हे राजन! मैं तुम्हारे लिए विस्तार से इसे कहता हूँ, आप सत्पुरुषों के इस कथन को हृदय में धारण करो ।।६१ ।।
हमारा यह चरित्र, उत्कृष्ट सुख के सुन्दर स्थान-मोक्ष की सिद्धि को देने वाला है। इस हितकारक चरित को बुद्धि स्थिर कर जो विद्वान् सुनते हैं ये कुन्द पुष्य तथा चन्द्रमा के समान निर्मल कीर्ति रूपी लक्ष्मी के द्वारा दिशाओं की दीवालों को लिप्त करते हुए तथा संसार में उत्कृष्ट मोगलक्ष्मी का उपभोग करते हुए शाश्वत कल्याण मोक्ष को प्राप्त होते हैं ।।६२।।
इस प्रकार श्रीवादिराजसूरियिरचित यशोधरचरित
में प्रथमसर्ग समाप्त हुआ।