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हिंसा और उसका फल
अन्थत्वं कुब्जकत्थं च दुष्कुलत्वं कुजन्मनाम् । दौर्भाग्यत्वं विभीरुत्वं निःस्वामित्वं दरिद्रताम् ।। दीनत्वं निर्धनत्वं च वामनत्वं कुरूपताम् । भोगोपभोगहीनत्वं दासत्वं बहुशोकताम् ।। नारकत्वं कुतिर्यक्त्वं कुष्ठादिव्याधिसंचयम् । सर्वानिष्टादिसंयोगं वियोगं चेष्टवस्तुनः ।। निर्दया हिंसका नूनं प्राणिनश्च भवे भवे । लभन्ते बहुधाऽशर्म प्राणिघातार्जिताऽशुभात् ।।
दयाहीन हिंसक प्राणी प्राणिघात से उत्पन्न अशुभ कर्म से अन्धापन, कुबड़ापन, दुष्कुलता, कुजन्मता, दौभाग्य, भीरूपन, स्वामिरहितत्व, दरिद्रता, दीनता, मृत्यु, वामनपन, कुरूपता, भोगोपभोग से रहितपना, दासपन, बहुत शोक से सहितपना, नारकता, खोटा तिर्यञ्चपन, कुष्ठादि रोगों का समूह, सब प्रकार के अनिष्ट पदार्थों के संयोग और इष्टवियोग को भव भव में प्राप्त होते हैं।
Havarलोकसंग्रह से साभार
चारह