SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थं मारवासः इति समयं सोई गहुवयं सानुकम्पोषयं व समन्ताद्ब्रह्मविप्रुधो विकिरन्तो मामेवमघत्--- पुत्र एवंशास्त्रेषु सङ्गविवम्पोऽपि कथं श्वमद्याचारान्य इवावभाससे । करे हि नाम सचेतमः स्वप्नेषु भक्तमुपलभ्य गोणि प्रसारयति । afe च नियमेन सत्फला भवन्ति स्वप्नास्तहि हतमेतदायकस्य त्रियामायां मन्दमठिकावलोकनाचा मन्त्रित महोपतेदपाख्यानम् । प्राणिनो हानिलानल पोनसान्तरिताः स्वप्नावस्थायामर्थजातं भूतपूर्वं मधूसपूर्ण वा निरीक्षन्ते । कथितवती वाव में पथि सहाच्यम्तीयं तव पानी दुहिता वसन्तिका, यथा-आर्याणि प्रभावशेषायां निशि स्वप्ने किलाह यत्रारिव संवृतास्मि । भुक्ता च मन्मातुः श्रामन्त्रितं भूरिति । निष्कपटक राज्यांभवं प्रवृद्धाभनिवेशावहिताश्व भूपाः । दिशो दशैतास्तव कामितानि यच्छन्ति चिन्तामणिभिः समानाः || ३७ ॥ अनि पूर्वभवताजितानि त्यागाय भोगाय वसूनि सन्ति । इद्राविषेयश्च विलासिनीनामयं गणस्तेऽप्सरसां सदृद्धः ॥ ३८ ॥ निष्कारणं सर्वमिदं विहाय त्वं केन कामेन सपो हि कुर्याः । स्वर्गापवर्गामिवं न सम्यग्दृष्टादष्टं खल गरीयः ।। ३९ ।। अयातया कोऽपि न वर्तते ते तत्रोत्सृज कोषविषं न दोषः । भयेन कि विसपिणीनां कन्यां स्यजन्कोर्णप निरीक्षितोऽस्ति ।। ४० ।। पर्यन्त उदय प्राप्त करें और बघू व पोते वर्ग के साथ समुद्रजल मर्यादावाली इस पृथिवी का प्रतिपालन करें ।' ।। ३६ ।। हे पुत्र ! समस्त शास्त्रों में विद्वानों की सङ्गति से विचक्षण होते हुए भी तुम इस समय मूर्ख या क्रियामूढ़-सरोखे किस प्रकार प्रतीत होते हो ? निश्चय से कौन चतुर पुरुष स्वन में धान्य प्राप्त करके [ उसे भरने हेतु ] गोणी ( बोरा या थैला) धारण करता है ? अपि तु कोई नहीं करता । यदि स्वप्न नियम से सत्य फलवाले होते हैं तो आचार्य की, जिसने रात्रि में स्वप्न में लड्डुओंों से भरी हुई छात्रशाला को देखने से राजा को परिवार सहित निमन्त्रित किया था, यह जगत्प्रसिद्ध नष्ट दृष्टान्त कथा [ सच्ची ] समझनी चाहिए। अतः प्राणी वात पित्त व कफ सहित होते हुए स्वप्नावसर में पूर्व में उत्पन्न हुए या पूर्व में नहीं उत्पन्न हुए वस्तु समूह को देखते हैं। इस समय में ही मेरे मार्ग में साथ आती हुई इस तुम्हारी धाय की पुत्री बसन्तिका नामवाली ने मुझ से निम्न प्रकार कहा था—यथा - 'हे स्वामिनि । पश्चिम रात्रि के प्रान्तभाग में निश्चय से में स्वप्न में यवागू- सरीखी हुई । अर्थात् मैंने स्वप्न में विशेष मात्रा में यवागू ( पतले भात ) देखे । और जिन्हें, मेरी माता के श्राद्ध में निमन्त्रित किये हुए ब्राह्मणों ने भक्षण किये १ हे पुत्र । मह राज्य, क्षुद्र शत्रुओं से रहित होता हुआ वृद्धिगल हुआ है व यह सामन्त वर्ग (अधीनस्थ नृप समूह) आपका आशावर्ती हुआ सावघान है। ये दश दिशाएं चिन्तामणि- सरीखों आपके लिए अभिलषित वस्तु देती हैं ||३७|| ये धनादि लक्ष्मियां, जिन्हें आपने पूर्वजों ( यशोवन्बु व यशोर्घ राजा) से उपार्जित की हैं, दान तथा भोग निमित्त वर्तमान हैं एवं रम्भा, तिलोत्तमा, मेनका और उवंशो आदि अप्सराओं-सरीखी यह कामिनियों की श्रेणी आपकी इच्छानुसार प्रवृत्ति करती हुई विनयशील है | |३८|| हे पुत्र ! तुम इस समस्त पुर्वोच राज्यादि वैभव को निष्प्रयोजन छोड़कर निश्चय से किस अभिलापा से तपश्चरण करते हो ? यह तपश्चरण स्वर्ग व मोक्ष निमित्त नहीं है । हे पुत्र ! क्या प्रत्यक्ष फल से परीक्ष फल निश्चय से विशेष महान् होता है ? अपि तु नहीं होता ||३९|| हे राजन् ! यदि कोई पुरुष तुम्हारी आज्ञानुसार प्रवृत्ति नहीं करता तो १. समुच्चयालंकारः । २. मेण समुच्चयालंकारः काक्षेपश्च । ७
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy