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चतुर्थ श्राश्वास पिसहवयोमानं स्मरमग्विरप्रासादम्, प्रस्तुत्य च माटुकारपरिभाषामनोहराः प्रणस्युपोधातबिस्तारिणीपदानानुतन्त्रप्रवृत्ताः स्मरसूविवरणवतोस्तास्ताः कयाः, पुद्विरेफ व मकरन्दपानेन, राजहंस इष मणालखणनेन, कुरा इव मृगीशक्षविलेखनेन, वनपास इस सप्तादेष्टनेन, सिंह इव मेखलाधिरोहणेन, पुष्पाकर इव पिकघजितेन, उध्यावविनपालब इव पूर्णकुम्भाशयणन, करभ इव विटपाकर्षणेन, सरित्पतिरिवापगावर्तपरिवर्तकालनेन, मकर इव कल्लोलताउनेन, वनगन इब कमलिनीसर परिमलेन, द्रवन्निव विलीनयन्निव निमज्जम्निव विवान्निव निर्वापन्निद ख, संस्तरनन्पजन्मनो रसप्रसरः
इसके बाद मैंने कामीजनों में प्रसिद्ध ऐसी कथाएँ कहाँ, जो चाटुकार परिभाषा से मनोहर थीं। अर्थात्-जो स्नेह जनक व मिथ्या प्रशंसा से व्याप्त हुई परिभाषा (भाषण) से हृदय को उल्लासित करनेवाली थीं। पक्षान्तर में अनियम में नियमकारिणी परिभाषाएं ( शास्त्र विशेष ) जिसप्रकार मनोहर होती हैं। जो प्रणति ( पादपतन ) व उपोद्घात ( समीप में मस्तक-ताड़न ) से विस्तृत थीं। पक्षान्तर में कथा-प्रारम्भ में मङ्गलार्थ प्रणति ( इष्ट देवता को नमस्कार ) की जाती है, पश्चात् उपोद्घात ( विवक्षित वस्तु का अवतरण-क्रम ) द्वारा कथाएं विस्तुत होती हैं।
इसीप्रकार जो दाहप्रदानानुतन्त्रप्रवृत्त हैं । अर्थात्-जो पुरुषकार ( पुरुषत्व ) दानानन्तर पश्चात् सुरत ( मैथुन ) में प्रवृत्त हुई हैं। पक्षान्तर में जो, दण्डप्रदान ( दक्षिणापथ-गुरुदक्षिणा के मार्ग पूर्वक ?) अनुसन्त्र (बातिका-शकाएं उठाकर उनका समाधान करना ) द्वारा प्रवृत्त हुई हैं। एवं जो स्मरसूत्र धारण ( जवाओं के कपर जंघाओं का स्थापन ) द्वारा विवरण-युक्त हैं। अर्थात्-गोप्यस्थान-प्रकटन-युक्त हैं। पक्षान्तर में शास्त्रों के मूल सूत्रों का विवरण वृत्तिन्नन्थ द्वारा होता है।
इसके बाद मैंने उस अमृतमति महादेवीके साथ उसप्रकार मकरन्दपान ( ओष्ठ-चुम्बन ) द्वारा मैथुन-सुख भोगा जिस प्रकार भ्रमर मकरन्द-पान (पुष्परस-पान ) द्वारा सुखानुभव करता है। मैंने उसके साथ मृणाल-खण्डन (ओष्ठ-खण्डन ) द्वारा उसप्रकार सुरत-सुख भोगा जिसप्रकार राजहंस मृणालखण्डन ( कमल की नाल के स्खण्डन ) से सुखानुभव करता है। मैंने उसके साथ मृगीशृङ्गविलेखन ( प्रिया के केशपाशग्रहण ) द्वारा उसप्रकार सुरत-सुख भोगा जिसप्रकार हिरण मृगौशृङ्ग विलेखन । हिरणी के सींगों का खरोचना । द्वारा सुख भोगता है। मैंने उसके साथ लतावेष्टन ( भुजाओं द्वारा आलिङ्गन ) द्वारा उसप्रकार कामसुख का अनुभव किया जिसप्रकार वन का वृक्ष लतावेष्टन द्वारा सुखानुभव करता है। मैंने उस महादेवी के साथ मेखलाधिरोहण ( कटिंदेश-कमर के ग्रहण ) द्वारा उसप्रकार काम-सुख का अनुभव किया जिसप्रकार सिंह मेखलाधिरोहण ( पर्वत-नितम्ब' पर आरोहण) द्वारा सुखानुभव करता है । मैंने उसके साथ पिकवघुकूजित ( कोयल सरीखो सरस बाणी के श्रवण) द्वारा उसप्रकार कामसुख का अनुभव किया जिसप्रकार वसन्त कोयल के कलकल कूजित द्वारा सुखानुभव करता है। मैंने उस देवी के साथ पूर्णकुम्भाश्चयण ( स्तनों के मर्दन ) द्वारा उसप्रकार सुरत-सुख का अनुभव किया जिसप्रकार उत्सव दिवसरूपी पल्लष पूर्णकुम्भाश्रयण ( पूर्णकलशों) के स्थापन द्वारा सुखानुभव करता है। मैंने उसके साथ विटपाकर्षण ( बाहुलताओं के आकर्षण द्वारा उसप्रकार कामसुख का अनुभव किया जिसप्रकार ऊँट विटपाकर्षण ( वृक्ष-शाखाओं के आकर्षण ) द्वारा सुखानुभव करता है। मैंने उस महादेवी के साथ आपगावतपरिवर्तकलन ( नाभि प्रदेश के अवलोबान) द्वारा उसप्रकार कामसुख भोगा जिसप्रकार समुद्र नदियों के मवर धारण द्वारा सुखानुभव करता है। जिसप्रकार मकर कल्लोलताड़न ( समुद्र-तरङ्गों के ताड़न । द्वारा सुखानुभव करता है उसीप्रकार मैंने उस महादेवी के कल्लोलताड़न ( वाहुदण्डों के ताड़न ) द्वारा कामसुख का अनुभव किया । एवं जिसप्रकार विन्ध्याचल का हाथी कमलिनीसरःपरिमलन ( कमलिनियों से व्याप्त हुए तालाब में डुबकी लगाने ) द्वारा सुखानुभव करता है उसो