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________________ ૨૮૪ यशस्तिलकचम्पुकाव्ये कुम्बाम्बरस्य अमराम्बरचरनरनिम्धिनी'कडम्बनवप्रादुर्भूतमदन मदमकरन्ददुर्दिन विनोदारबिन्दचन्द्रायमागोरितो - दितन्तनासा पहसिता चीनचरित्रच्युतविरञ्च विरों घनाधिविधानसरसस्प अनेकशस्त्रिभुवनक्षोभविधायिभियानपर्यावयूलविश्वप्रायू हव्यूहरनन्यजनसामान्धवृत्तिभिमनोगोचराति"राश्चर्यप्रभावभूमिभिरनवधारिसविधानस्तस्तलोसरगुणग्रामणीभिस्तपःप्रारम्भः सफलैहिकमुषसाम्राज्यवरप्रधानावहिताश्यातावषीरित विहिपतोपनतवमदेवतालकासि कुलविलुप्यमानवरणसरसिरहपरागस्य निर्वाणपनिष्ठितात्मनो रत्नत्रयपुरःसरस्य भगवतःसर्वसाघुपरमेष्ठिनोऽप्टतयोमिष्टि फरोमोति स्वाहा । अपि च । बोधापगाप्रवाहेण विष्यासान नवलयः । *विध्याराध्यानयः सन्तु साध्यवोध्याय साधवः ।।३१।। ॐ जिनजिनापमजिमघमंजिनोक्तजीवादितत्त्वावधारणदयविम्भित निरतिशयाभिनिवेशाधिष्ठानासुप्रकाशितशङ्का प्राकाम्या' बजावन कुमतातिहाल्योबाराखु२५ प्रयामसंवेगानुकम्पास्तिव्यस्तम्भसंभृतासु ऐसे विशुद्ध चारित्र-समूह द्वारा नवीन चारित्र से च्युत हुए ब्रह्मा व विरोचन ( तपस्वी विशेष ) आदि तपस्वियों का ध्यान तिरस्कृत किया है, जो कि ( चारित्र-समूह ) देवाङ्गना, विद्याधरी व मानवों को कमनीय कामिनी. समूहरूपी तड़ाग में उत्पन्न हुए काममदरूपी मकरन्दवालं दुदिन ( मेघाच्छन्न दिन ) की कोड़ारूपी कमलों को चन्द्र-सा आचरण करनेवाला है, अर्थात् संकुचित करनेवाला है। अनेक बार तीनों लोकों को क्षोभित कर देनेवाले, धर्मध्यान को निश्चलता से समस्त विघ्नों के समूह को नष्ट करनेवाले, सर्व साधारण मानवों द्वारा अशक्य प्रवृत्तिवाले, मन से चिन्तबन के लिए अशक्य, आश्चर्य व प्रभाव उत्पन्न करने के लिए पृथिवी-सरीखे, मुलगुण व उत्तरगणों की प्रमुखतावाले नानाप्रकार के तपों के अभ्यासों से ( क्षुभित--सन्तुष्ट होकर ) समस्त इस ल घिी सुख-साम्राज्यावर कलि सावधानकर आये हार, परन्त तिरस्कृत होनेपर आश्चर्यान्वित व नम्रीभूत हुए बत्न-देवताओं के केश-समूह-रूपी भ्रमर-समूह द्वारा, जिनके चरणकमलों का पराग विलुप्त कर दिया गया है और जिनकी आत्मा मोक्ष-मार्ग में श्रद्धालु है और जो सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय से विभूषित हैं। जिन्होंने सम्यग्ज्ञानरूपी नदो के प्रवाह द्वारा कामरूपी अग्नि बुझा दी है, और जिनके चरण पूजा विधि से पूजनीय हैं, वे साधु केवलज्ञान की प्राप्ति के लिए होवें ।। ३१॥ सम्यग्दर्शन-पूजा मैं संसाररूपी वृक्ष को काटने में प्रयम कारण, समस्त कल्याणों के कर्ता व पंचपरमेष्ठों को अग्नेसर करनेवाले भगवान् सम्यग्दर्शनरूपीरत्न को अष्ट द्रव्यों से पूजा करता हूँ। जिसने ( सम्बग्दर्शन ने ) पुण्यशाली १. स्त्रीसमुहहद तमोत्पन्न । २. याम। * आच्छादित, क्रोडा एव कमा । ३. कमलसंकोचकारकः कामविध्वंसका इति भावः । ४. व्रातः समूहः । ५. तिरस्कृतब्रह्मादयः । *. अग्मिवं1 ६. ब्रह्मा । ७. ऋषिनाम 1 ८. तापस । ९. ध्यानान्यस्य । १०. प्रत्यूही विघ्नः । ११. अगम्यैः। १२. सावधान ! *, 'अवधारित' ग० । विर्या-मु. प्रति का अवधीरित' पाठ सही प्रतीत होता है-सम्पादक । *. पुजाविधिना श्राराध्याः अधयश्चरणा: येपां। १३. साध्यो बोधः आत्मा यस्य तत् साध्यबाध्यं केवलजानं तस्म। १४. अवधारणहयमयोगव्यवच्छेदान्ययोगव्यवच्छेदः, जिनो देव एव, जिन एव देवः इत्यादि । १५, गर्वेषां सम्यग्दृष्टानामभिप्रायाः परिणामाः समानाः सदृशा एव भवन्ति न तु न्यूनाधिकाः। १६-१७, प्रकरित-निष्कासितशल्यासु, प्रासादभूमिशोधनेऽपि अस्थ्यादि निष्काश्यते, निःशतिगुण । १८. प्राकाम्पमाकाहा। १९. अवसादनं विचिकित्सा। २०. मूढदृष्टिः एतानि शल्यानि । २१. प्रायः भूमिशोधने अस्यादिर्क निष्काश्यते ।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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