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________________ ससम आश्वास ३३१ "पसवित्रीसमेतया अनाथलोकलोचनचकोर'कोमहवल्पमसया रामदत्तमा करुणारसप्रचारपदव्या महादेव्याणितानु"कोशाभिनिवेशानिणितश्च । सबनु 'अस्मन्मनःसंपात्रि पात्रि," म खल्वंष मनुष्यः पिशायपरिष्लतो' नाप्युन्मत्ताधरितो यतस्तं दिवसमाधं कृत्वा सकलमपि परिवत्सरबलमेकवाक्यव्याहा राकुष्ठ पाठकठोरकष्ठनालः । तद्विधारयेयं तवाचिरकालं * शारविशारवहृदयाम्बुजस्य एतरकोजाग्याजेन 'मन्नरन्त:करणम् । अम्बिके '२, स्वयापि तदेवनावसरे पचहमेनमनेककृत राबारनिचितषिसमतिबहुकुमकुप"टचेष्टितं बकोट्यप्तमुहम्समातं पृमचामि, पद्याचास्य "कटकोमिकाकादिकं जयामि, तत्तवाभिशानोकृत्य मगौमुल्यव्यान्नोसमाचारकट्नी श्रीवत्ता भदिनी "तिन्तिगीकातल्भागोऽस्प वणियो विषमरुचिमरीचिसंख्यासंपन्नानि रत्नानि याचयितव्या।' इति निपुणिनामा गीतिः५० मस्ताहति न पोहानन्दु, बुनु २२, स्वयापि भगवत्या साथ विजृम्भितम्यम्, यद्यस्य विश्वापुषस्यास्ति सत्यता' इत्यस्येश्य तवाचरिताचरणा शतशस्तत्तबभिज्ञानशापनानु. देखा, जो कि राजमहल की उपरितन भूमि पर बैठकर नागरिक कामिनी जनों की कौमुदी महोत्सब-वेला को, जिसने चन्द्ररूपी अमृतपात्र के फुव्वारा-गृह में प्रवेश करने से तीन लोक शुभ्र किये हैं, देख रही थी, जो निपुणिका नाम की धाय सहित थी । जिसका परित्र अनाथलोक के नेत्ररूपी चकोर पक्षियों को सन्तुष्ट करने के लिए चांदनी की सृष्टि करनेवाला है और जो करुणा रस के प्रचार की मार्गरूप है। पश्चात् उसने अपनी निपुणिका धाय से कहा-'मेरे मन में मैत्री स्थापित करनेवाली धाय | निस्सन्देह यह मनुष्य पिशाच के द्वारा गृहीत नहीं है, और न इसका आचरण पागलों-सरीखा है। क्योंकि इसकी कण्टनाल उसो दिन से लेकर लगातार छह माह तक उक्त प्रकार एक वाक्य संबंधी उच्चारण के अमन्द पाठ से कठोर हो गई है । अतः मुझे द्यूतकोड़ा के बहाने से द्यूत-कोड़ा में प्रवीण हृदय कमलवाले श्रीभूति मन्त्री के हृदय की परीक्षा शीघ्र करनी चाहिए। माता! जुआ खेलते समय में अनेक कुत्सित ( निन्द्य ) आचरण से व्याप्त चित्तवाले, अत्यधिक मायाचार की चेष्टा-युक्त व बगुला भगत से जो जो वृत्तान्त-समूह पू और जो उसके कक्षण, अंगूठी व वस्त्रादि जीतूं उनकी स्मृति या पहिचान कराकर उन सब को प्रमाण रूप से उपस्थित करके-तुम्हें उस मृगी के समान मुखवाली किन्तु सिंहनी के समान आचरणवालो कुट्टनी श्रीदत्ता से इमली के वृक्ष पर आरूढ़ हुए इस वणिक् के सप्ताचि ( अग्नि ) की संख्यावाले ( सात ) रत्त मांग लाने चाहिए।' ___ रानी ने इसप्रकार 'निपुणिका' धाय को संकेत कर दिया और आगामी दिन में प्रार्थना को'हे मेरे हृदय को सदा आनन्द देनेवाले दुन्दुभि-सरीखे पाशदेवता! यदि इस इमली के वृक्षवाला पुरुष सच्चा है तो भगवती तुझे भी इसमें अच्छी तरह सहायता करनी चाहिए।' पश्चात् उसने वैसा ही किया, अतिश्रीभूति के साथ शतरज खेलकर उसके कड़े, अंगूठो और वस्त्रादि जीत लिये और श्रीभूति की पत्नो से, १. धात्री । २. 'चन्ट्रिकाचावृत्तयः' इति क० । ३. मार्गरूपया। ४. 'करुणाभिप्रायात्' रिल ल । ५० तु अनुकोशः अनुग्रहः । 'अनुग्रह दिखच०। ५. हे मातः !। ६. गृहीतः। ७. संवत्सराई। ८. आलापः । १. अमन्दः । १०. धूतक्रीडा । ११. मनिवस्य । १२. हे पापि !। १३. क्रोडन । १४. कुत्सित । १५. माया । १६. कंकण, मुद्रिका, वस्त्र । १७. 'कुट्टिनी' इति का। १८. चिचा। १९. पप्ताचिसंस्पानि । १०. संकेतः । २१. आगामिदिने। २२. हे धात्रि!। २३. प्रार्थ्य।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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