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________________ षष्ठ आश्वासः २७७ सिद्धासोपान्तः सामन्तश्च सार्थ प्रवध्य तस्मै हवाल्योन्मुलनप्रभवमतये क्षितिपतपे प्राभतीकृतः । क्षितिपतिः-शस्त्रशास्त्रविद्यापिकरणध्याकरणपतजले बले, निखिलेऽपि चले चिरकालमनेकशः कृतंकृष्णववनच्छायस्यास्प द्विष्टस्य विजयान्नितान्तं तुष्टोऽस्मि । तद्याच्यतो मनोभिलाषपरो वरः'। बलि:-'अलक, यवाहं पाचे तबायं प्रसादोकर्स ष्यः' इत्युषारमुयोर्य पुनश्चतुरबालप्रबलः प्रतिकूलभूपालबिनपनाम पद्ममवनिपतिमावेशं पाघिस्या सरवरमशेषाशावानिवंशानी कत्रितक्षफलमही सलो दिग्विजययात्रार्थमुच्चचाल । अत्रान्तरे बिहारवशावगचानकम्पनाचार्यस्तेन महता मुनिनिकायन साक हस्तिनागपुरमनुसृत्योसरविग्विलासिम्पबतं सकुमुमलरी हेमगिरी महावगाहापां गुहायो चातुर्मासोनिमिस स्पिति बन्ध । बलिरपि निखिलजलविरोषः सविषवतविनोवितवीरवषययो विग्विजयं विधायागतलं भगवन्तमयबुध्य चिरकालव्यवधाने यतिविषनिक इव जातप्रकोपोद्रेकस्तदपराधविषानाय घराधीश्वर पुरावितोणधरव्याजेन 'समाशाखामात्मकशाप्सनप्राज्य राज्यमन्तःपुरप्रचारश्वर्यमात्रसपतः१० पयतोऽध्ययं मन्नमिण भुमिसन्याजन्योत्कर्ष चिकोषमदनगव्याधिकरण-१२ रूपकरणरग्निहोत्रमारेभे । युद्ध किया। जिससे बलि ने विख्यात नाम वाले प्रधानों और युद्ध-विद्या में समीपभूत मामन्तों के साथ उसे बांधकर हृदय के कीले के उन्मूलन होने से प्रसन्न बुद्धिवाले पद्मराजा के लिए भेंट कर दिया। तब पद्म ने कहा-'शास्त्र-विद्या के आधार व्याकरण शास्त्र में पतञ्जलि-सरीखे शस्त्र विद्या में प्रवीण वलि ! समस्त सैन्य के होते हुए भी चिरकाल से अनेक बार मेरी मुख-कान्ति को काली करने वाले इस शत्रु को जीतने से मैं बहुत प्रसन्न है, इसलिए आप मुझ से अपनी मनोकामना पूर्ण करने वाला बर मागिए ।' बलि-स्वामिन् ! जब मैं आपसे याचना करूँ, तब महाराज मुझ पर कृपा करें।' ऐसा उदारता पूर्वक कहकर और राजा पन से आज्ञा लेकर विरोधी राजाओं को वश में करने के उद्देश्य से चतुरङ्ग सेना से शक्तिशाली हुए बलि ने समस्त दिशाओं को अपने अधीन करने वाले सैन्य-शिविर द्वारा समस्त पृथिवी तल को आच्छादित करके दिग्विजय करने के लिए प्रस्थान किया। इसी बीच में पूज्य अकम्पनाचार्य उस बड़े भारी मुनि संघ के साथ बिहार करते हुए, हस्तिनागपुर में पधारे और उत्तर दिशारूपो स्त्री के लिए कानों के आभूषणरूप फूले हुए वृक्षों वाले हेमगिरि नाम पर्वत की महागम्भीर गुफा में चतुर्मास करने के लिए ठहर गए। समस्त समुद्र-तट के समीपवर्ती वनों में बोर वधू का हृदय प्रमुदित करने वाला वलि भी दिग्विजय करके लौट आया। जैसे बहुत समय बीत जाने पर भी वर्षा ऋतु में पागल कुत्ते के काटने का जहर चढ़ जाता है, वैसे ही मुनि संघ का समाचार जानकर उसे विशेष क्रोव-द्धि उत्पन्न हुई । इसलिए उसने मुनिसंघ की विराधना करने के उद्देश्य से पूर्व में दिये हुए बर का बहाना लेकर अपने स्वामी राजा पम से, जिसका मन्दिर ( स्थान ) अन्तःपुर में संचार के योग्य वैभव वाला है, एक पक्ष के लिए केवल अपने हो शासन की प्रचुरता वाला राज्य शासन मांग लिया और बलि ने मुनिसंघ के ऊपर विशेष उपसगं करने के इच्छुक होते हुए मद्य व मांसादि साधनों द्वारा महायज्ञ करना आरम्भ कर दिया। १. समीपभूतः । २. सैन्य । ३. गम्भीराया। ४. तटममीप। '५, आच्छावनापि। ६. 'दृकशन के जलमेचनमिव, विल उनाले शुना दृष्टः पुमान् तम्य विपं वर्षांकाने उदयमागच्छनि' टिन । 'अलर्क: पहिलाच' इति पञ्जिकाकारः । 'अहिलकुर्कुरः'। टि. २०। ७. तेषां मुनीनां विराधनानिमित्तं । ८. पूर्व दत्त। ९. पक्षकं । १०. मन्दिरान् । ११. उपरार्ग । १२. मामांस । १३. महायज्ञं ।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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