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________________ २७६ यशस्तिलकधम्पूकाव्ये कुषजाङ्गलमण्डलेषु सविलासिनोमलकेसिविलितका लेयपाटसकस्लोलापरसुरसरिस्सीमन्तिनोम्बितपर्वमाप्रप्तरे हस्तिनागपुरे साम्राज्यलक्ष्मी मिव लक्ष्मीमती महादेवीमवहाय सरस्वतीरसावगाहसागरस्य श्रुतसागरस्य भगवतोऽभ्यर्ग पितृविनयविष्णुना विष्णुना लघुजम्मना नुना सार्ष प्रधितोलापप्राय महापयस्य महोपमहान्तं पद्मनामनिलयं तनयमशिश्रिमत् । पभोपि चारोबाराद्विचित शक्थिाप्रभावाय तस्मै बलिसचिवाग सर्वाधिकारिक स्थानमवात् । बलि:-'देव, गृहोतोऽयमनन्यसामान्यसंभावनाडावः प्रसादः। किंतु कर्णेजपत्तोनां लवलञ्चनोनितचेतःप्रवृत्तीनो - प्रायेण पृरुषाणां नियोगिपद इवयास्पदं न शोोजितचिलस्पोबारवृत्तस्य च, तवसाध्यसायनेन नन्वयं जना निदेशवामेनानुगृहीतव्यः' । पय:-'समिटम, मानापा सबंधुरीणेषु भवतिषु सचिवेषु सत्स कि नामासाध्य समस्ति ।' अन्यवा तु कुम्भपुराधिकृतभूति:५१ सिंहकोतिर्गमनपतिरकायोधनलम्धपा प्रतापनः संनद्धसारसाधनो हस्तिनागपुरावस्क प्रदानामागच्छन्, एतन्नगरम्यानाय सनिवितागमनः पद्मनिवाइभ्यमित्रोण'". प्रयाणपरायणेन फूटप्रकामकन्न कोविषिषणेन बलिनाध्वमध्ये प्रबन्धेन युद्धयमाना, नामनिर्गविधानः प्रधानदेश के हल्लिनागपुर नगर के, जिसकी विस्तृत पर्यन्तभूमि ऐसी गङ्गा नदो रूपो स्त्री द्वारा चुम्बन की गई है, जिसके तरङ्गरूपी ओष्ट नहीं की कामिनियों द्वारा की हुई जलक्रीड़ा से गिरे हुए कुंकुम से लालिमा-युक्त हैं, ऐसे महापद्म नामक राजा के ज्येष्ठ पुत्र पद्मनान के स्थान वाले राजा का आश्रय लिया, जिसने साम्राज्य लक्ष्मी-सरीखी लक्ष्मीमति पट्टरानी का त्याग किया था और जिसने ऐसे पूज्य श्रुतसागर नामक आचार्य के समीप पितृभक्ति को विस्तारित करने वाले अपने विष्णु नाम के छोटे पुत्र के साथ दीक्षा-सम्पत्ति ग्रहण को थी, जो कि सरस्वती रूपी नदी के आमन्दरूप जल में अवगाहन का समुद्र है। पद्यराजा ने भी गुप्तचरों द्वारा जाने हुए वंश व विद्या से प्रभावशाली बलि के लिए समस्त अधिकारी वर्ग में श्रेष्ठ मन्त्री का पद प्रदान किया । तव वलि ने कहा-'हे देव ! मैंने आपका असाधारण सन्मान में सुखप्रद अनुग्रह ग्रहण कर लिया परन्तु अधिकार का पद चुगलखोरों और धुसखोरों के लिए प्रायः सुखदायक होता है न कि महान चरित्र वाले व शूरता से शक्तिशाली चित्त वालों के लिए। अतः मुझे ऐसी आजा-प्रदान द्वारा अनुगृहीत कीजिए, जिसमें असाध्य कार्य सिद्ध हो सके।' तब पहाराजा ने कहा-'तुम्हारा कहना ठीक है, किन्तु स्वामी के अभोष्ट को पूरा करने में प्रवीण और समस्त कर्तव्यों में कुशल तुम्हारे जैसे मन्त्रियों के होते हुए कुछ भी असाध्य नहीं है।' एक समय कुम्भपुर के स्वामी सिडकोनि नामके राजा ने, जिसने अनेक युद्धों में यशरूपी सिद्धि प्राप्त की थी और जो युद्ध विद्या में पागल सैनिको की शक्तिरूप साधनों से मन्नद्ध (सुसज्जित) था, हस्तिनागपुर पर हमला करने के लिए प्रस्थान किया। परन्तु शत्रु के नगर में प्रच्छन्न हुए--छिपे हर गुप्तचरों ने इसके आने का समाचार सूचित कर दिया, जिससे पद्य राजा की आमा लेकर शत्रु के सन्मुख आक्रमण करने के लिए प्रस्थान करने में तत्पर हुए एवं कूट कपट को अभिलाषा वाले युद्धों में प्रवीण बुद्धि वाले बलि नामके मन्यो ने मार्ग के मध्य में ही मार्ग रोककर उसके साथ तुमुल १. देश । २. कुङ्गम। ३. गंगानवी एम सामन्तिनी । ४. परित्यज्य । ५. बिस्तारकेण । ६. संपदः । ७. ज्येष्ठं । ८. बलिमन्त्री । ५. मल्लक्षणो जनः । १०. प्रवीणेषु । *. सर्वकर्मणि कुशलेषु। ११. स्वामी । १२. संग्राम । १३. घाटकः। १४. प्रसन्नचरः । १५. नानुसन्मुख । १६. संग्राम । १७, गार्गरोधनेन ।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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