SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३४ ) में एवं स्थितिचारण अंग में प्रसिद्ध वातिका २४१ - २५७ कथा १५ १६ १७ १८ कल्प प्रभावना यंग का स्वरूप और इसमें प्रसिद्ध बच कुमार मुनि की कथा २५७-२७० १६, २० व कल्प atar at स्वरूप बार उसमें प्रसिद्ध विष्णु २७०-२०१ कुमार मुर्ति की हाथा २१ व कल्प के 7 11 r safer के दो कार अन्तरंग व बाह्यसाधन, दर्शन के दो मेव, तीन भेद और दशमेंद, उनमें दो भेदों का free, rose के बिल, प्रथम, संवेग अनुरुम्पा व भास्तिक्य काप सम्यक्त्व के तीन भेदों और दण भेदों का स्वरूप २८२-२६५ गृहस्थ आवक के ग्यारह मंद (११ प्रतिमाएँ और मुनि के चार भेदों के तीन शीर उनके दूर करने का उपाय, सम्यक्त्व का माहात्म्य, सम्यक्त्व के की परिता के विषय में सम्यक् के पीस दोष मोक्षमार्गी कौन है ? निश्चय नय से राय का स्वरूप, 'रत्नत्रय आत्मस्वरूप है इसका सरस समर्थन, आत्मा धीर कर्म में महान भेद, 'आत्मा अपनी पर्याय का और कर्म चरनी पर्याय का फल है इसका दृष्टान्त रा मन, जिसका मन विशुद्ध है वह है और जिसका मन शुद्ध ( कषाय-बुक्त) है वह हिंसक व पापी है. गुल-दुःख से पुण्यपाप का दध, यह चित्त अशुभ ध्यान दुवारा पापचन्ध और शुभ ध्यान द्वारा पचन्ध और प्याग द्वारा मांश प्राप्त करता है, विल को निय न्त्रित करने का उपदेश २६-२६० सम्पज्ञान का स्वरूप व माहात्म्य, जाता के दोष से बुद्धि की विपरीतता ज्ञान के मेव २६०-२६१ चारि का लक्षण व मेद, सम्पवस्य-हीन ज्ञान की व्ययंता और ज्ञानहीन चारित्र की व्ययंता, सम्यक्त्व से सुर्गात, ज्ञान से कीर्ति चारित्र से पूजा और तीनों की प्राप्ति सेनाक्ष की प्राप्ति का निवेश करके तीनों ना स्वरूप-निदेश मनात्मावी गारद को शुद्ध करने का उपाय प सम्यग्दर्शन आदि का आश्रय २६१-२६३ २२, २३वकल्प सप्तम आश्वास 'द सम्पदर्शन के गुणवर्धक है इसका दृष्टान्त-माळा द्वारा समर्थन भाव के दो भेद पाठ मूल गुण, मद्य के दोष, मय पीनेवाले संन्यासी की कथा, मचत्रती धुलि पोर की कमा २६४-२६७ २४ वाँ कल्प -क्षण के दोष प्रमं सेवन न करने वालों की भूर्खता पहिंसा व-पालन का उपदेश मधु-सेवन के दोष, पाँस उदुम्बर फलों के दोष, रथ पीनेवालों तथा अनियों के साथ खान-पान का निषेध, चर्मपात्र में रक्ने हुए जल वादि का निषेध २६८-३०० कुछ लोगों की मान्यता है कि मूंग व उड़द-आदि एकेन्द्रिय जीवों का शरीर भी ऊंट व मेडा आदि के शरीर की मां वह जीव का शरीर है इसका बुक्ति पूर्व पूर्व निरास गाय का दूध शुद्ध है, परन्तु गोमांस शुद्ध नहीं है, इसका दृष्टान्त द्वारा समर्थन मांस स्पाय है और दूध पीने लायक है इसका मनित द्वारा समर्थन, मांस और धों में अन्तर विधि द्वारा शुद्धि के विधान की समीक्षा, बौद्ध, योग्य व चार्वाक आदि की मान्यता को न मान कर मांस-मक्षण का त्याग करना चाहिए. लालसापूर्वक मांस खाने वालों को दोहरा पाप मांस-मक्ष का संकल्प करने वाले राजा सोरसेन की या ३००-३०४ २५ व कल्प सांसत्यार्थी चाण्डाल को कथा २६ व कल्प धायकों के बारह उत्तर गुण, पाँच मणुव्रत व का लक्षण, पाँच पापों के सेवन से दुर्गति, हिंसा और अहिंसा को लक्षण, समस्त गृहकार्य देख-भाल कर करना और समस्त तरल पदार्थ ( घी, दूध आदि ) वस्त्र से छानकर उपयोग में लाने साहिए, ३०६ भोजन के अन्य उके पालने का उभ्य, रात्रि ३०४-३०५
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy