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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये कषायाः कोषमानाचास्ते चस्वारश्चत विषाः । संसारसिग्यसंपातहेसवः प्राणिनां मला: ॥१२॥ मनोवाफ्काय कर्माणि शुभाशुभषिभेदतः । भवन्ति पुण्यपापानो बन्धकारणमा:सति ॥१२२ ।
निराधारो निरालम्बः परमान समाश्रयः । नभोमध्यस्थितो लोकः सृष्टिसंहारजित. ।।१२३।। अथ मतम् --
नैव लग्नं जगत्ववापि भूभूमा भोधिनिभरम् । पातारयच यन्ते परस्यकर्माणि पोत्रिणः ॥१२४॥ वन्ध व मोक्ष के कारण-मिथ्यात्व, असंयम ( अविरति ) प्रमाद, कषाय व योग ये बंध के कारण कहे गये हैं और सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रय को मोक्ष का कारण कहा है ।।११७॥
मिथ्यात्व के भेद-मिथ्याष्टियों के मिथ्यात्व के तीन भेद हैं-आप्त ( तीर्थङ्कर अईन्त ), द्वादशाङ्ग शास्त्र, व मोक्षोपयोगी जीवादि तत्वों का यथार्थ श्रद्धान न करना, और विपर्यय तथा संशय । अथवा मिथ्यात्व के, जोकि संसार के प्रतिकूल नहीं है, अर्थात् --संमार का कारण है, पांच भेद हैं--एकान्त, संशय, अज्ञान, विपर्यय और विनय मिथ्यात्व ।।
भावार्थ-मिथ्यात्व सम्यग्दर्शन का घातक है, क्योंकि उसके रहते हा आत्मा में सम्यग्दर्शन प्रकट नहीं हो सकता । उसके पांच भेद हैं। अनेक धर्मात्मक वस्तु को एक धर्म रूप से मानना एकान्त मिथ्यात्व है, जेसे आत्मा नित्य ही है या अनित्य ही है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का रत्नत्रय मोक्ष का मार्ग है या नहीं इस प्रकार के संदेह को संशय मिथ्यात्व कहते हैं। देव, शास्त्र-आदि के स्वरूप को न जानना अशान मिथ्यात्व है। सूठे देव, झूठे शास्त्र और झूठे पदार्थों को सच्चा मानकर उनपर विश्वास करना विपर्यय मिथ्यात्व है और सभी धर्मों और उनके प्रवर्तकों को समान मानना विनय मिथ्यात्व है |११८-११९।। असंयम का स्वरूप-अहिंसा-आदि प्रतों का पालन न करना, कुशल क्रियाओं में आलस्य करना, निर्दय होना, सदा असंतुष्ट रहना और इन्द्रियों को इच्छानुकूल प्रवृत्ति करने को सज्जन पुरुषों ने असंयम कहा है ॥१२०॥
___ कषाय के भेद-क्रोध, मान, माया और लोभ के भेद से कषाय चार प्रकार की कही है। उनमें से प्रत्येक के चार-चार भेद हैं | अनन्तानुवन्धि, अप्रत्याख्यानावरण-प्रत्याख्यानावरण व संज्वलन क्रोय मान, माया लोभ । ये सभी काय प्राणियों को संसार समुद्र में गिराने की कारण मानी गई हैं।
भावार्थ-प्राणियों को संसार समुद्र में पतन कराने वाली कपायों के उक्त प्रकार१६ भेद हैं। अनन्ता. नुवन्धि जो मिथ्यात्व के साथ रहती हुई आत्मा के स्वरूपाचरण चारित्र का ब सम्यक्त्व का घात करती है । अप्रत्याख्यानावरण—जिसके उदय से देशचारित्र न हो सके । प्रत्याख्यानावरण-जो मकलचारित्र का धात करती है और संज्वलन---जिसके उदय से यथाख्यात चारिन न हो सके ॥१२१॥ योग-मनोयोग, वचनयोग व काययोग शुभ और अशुभ के भेद से दो प्रकार के होते हैं। इनमें से शुभ मनोयोग-आदि आत्मा के पुण्यवंध फा कारण हैं और अशुभ मनोयोग-आदि पापबंध के कारण हैं।
भावार्थ-हिंसा, चोरी व मैथुन करना-आदि अशुभ काययोग है। मिश्यामाषण, परनिन्दा व आत्मप्रशंसा-आदि अशुभ बचन योग है । किमी का अनिष्ट चिततवन करना व ईर्ष्या करना आदि अशुभ मनोयोग है। ये अशुभ क्रियाएं पापयन्ध को कारण हैं और इनसे बचकर अहिंसा सत्यभापण करना एवं परो. पकार-आदि शुभ क्रियाएँ पुण्यबंध की कारण हैं ।। १२२ ।।
१. अनन्तानुबंध्यप्रत्याख्यानप्रत्यास्म्यानसंज्वलनदेन । २. योगास्त्रयः। ३. वायुः । ४. किल चैनाः वदन्ति । ५. भूधाः पर्वताः । ६. अहिः सर्पः। ७. पौत्री शूकरः ।