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________________ वाक्यामृत' 'यशस्तिलक' के बाद की रचना है। क्योंकि नीतिवाक्यामृत की पूर्वोक्त प्रशस्ति में ग्रन्धकार ने अपने को 'यशस्तिलक महाकाव्य का कर्ता प्रकट किया है, इससे स्पष्ट है कि उक्त प्रशस्ति लिखते समय वे 'यशस्तिलक' को समाप्त कर चुके थे। दक्षिण के इतिहास से विदित होला है कि उक्त कृष्णराजदेव (तृतीय कृष्ण ) राष्ट्रकूट या राठोर वंश के महाराजा थे और इनका दूसरा नाम 'अकालवर्ष' था। ये अमोघवर्ष तृतीय के पुत्र थे। इनका राज्यकाल कम से कम वाक संवत् ८६७ से ८२४ ( वि० सं १००२-१०२२ ) तक प्रायः निश्चित्त है। ये दक्षिण के सार्वभौम राजा थे और बड़े प्रतापी थे। इनके अधीन अनेक माण्डलिक या करद राज्य थे। कृष्णराजदेव ने-जैसा कि सपने मुरि ने पदामिन 'शा-मिल, नोल, पाण्ड्य और चरम राजाओं को युद्ध में परास्त किया था। इनके समय में कनड़ी भाषा का सुप्रसिद्ध कवि 'पोन्न' हुआ है, जो जैन था और जिसने 'शान्तिपुराण' नामक श्रेष्ठ ग्रन्थ की रचना की है। महाराज वृष्णराजदेव के दरवार से उसे 'उभयभाषा कविचक्रवर्ती' की उपाधि मिली थी। राष्ट्रकूटों या राठोरों द्वारा दक्षिण के चालुक्य ( सोलंकी ) चंदा का सार्बभौमत्व अपहरण किये जाने के कारण वह निष्प्रभ होगया था। अतः जब तक राष्ट्र कट सार्वभीम रहे तब तक चालुक्य उनके आज्ञाकारी सामन्त या माण्डलिक राजा बनकर रहे। अतः अरिकेसरी का पुत्र 'वहिग' ऐसा ही एक सामन्त राजा था, जिसकी गङ्गाभारा नामक राजधानी में 'यशस्तिलक' की रचना समाप्त हुई है। इसी 'अरिफ़ेसरी' के समय में कनड़ी भाषा का सर्व श्रेष्ठ जेन कवि पम्प' हुना है, जिसकी रचना पर मुग्ध होकर 'अरिकेसरों ने उसे धर्मपुर नामका एक ग्राम पारितोषिक में दिया था। उसके बनाये हुए दो ग्रंथ ही इस समय उपलब्ध हैं१. 'आदिपुराणचम्यू' और २ 'भारत या बिकमार्जुन विजय'। पिछला ग्रन्थ शक संवत् ८६३ ( वि० सं० ९९८) में- यशस्तिलक से १८ बप पहले-बन चुका था। इसकी रचना के समय अरिकेसरी राज्य करता था। तब उसके १८ वर्ष बाद–पशस्तिलक की रचना के समय-उसका पुत्र सामन्त 'वद्दिग' राज्य करता होगा, यह इतिहास से प्रमाणित होता है। वाराणसी पावण कृ० ११ बीर नि० २४९७ विनीतसुन्दरलाल शास्त्री -सम्पादक
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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