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________________ गतिलाये अपि च । स्वविवक्ततुण्डकुटुमिनीलपनचापलच्युतोच्चिलिङ्गावपश्चनसंरबघण्यावयुद्ध मध्यागत सहरीप्रणीतफरकारकोलाहलफुत्कोलाजकुहरम्, कपिपलम्बाप्रलमस्तबपिलम्बमानजानकोत्नासितहरिणप्रयाणभरमौतभस्सूकनिकरम, क्वचिदनेकनाकुनिर्गतनिर्मोकालोकनकुपितकलापिनीपोतखरनखरमुखावलिश्पमानमे विनीववनम्, स्वचिवनवरतमृगमार्गमार्गणश्रमथान्तविलातल्लिकोश्वुलुश्चितधुरीपारिवीक्षणातुरतरक्षुषालयनानिम्नगायुलिनम्, पचिड़ामरिकनिकायसायकविद्धवृद्धवराहविरसविरसितस्रावस्कुरङ्गमनमागर्भनिभरम, पवचिदुन्मवमहिषमण्डलारस्थरणविषाणसंघट्टोच्चलत्स्फुलिङ्गसङ्गशीर्यमाणागमानपल्लवभरम्, पधिद्विपप्तपरनपावपाटितेभकुम्भस्थलोत्प्रवाहवहल्लोहितविधीयमानधियग्छवारुणमणिवण्डम्वरम्, स्वविविम्यिान विहारवानरनिकरविकीर्यमाणनीडक्रोमोडोनापजजच्छवच्छन्नाम्बरम, पवधिभ्रकयानोकहप्रकाण्डमण्डलीकोटरेड्डमरडाकिनोकरालितोत्सर्गम्, पाविघन घनघोरपूत्कारधूयाणपुराणविपिकोटरप्रयतवायसीवर्गम, पविघलवालालोन्मूलितमलाकुलकलभप्रचारम्, पविधियोश्वनिकुञ्जमुजरभज्यमामकुजराजिकूजितजरमञ्चममनकारम्, क्वचिचित्रककुलाघ्रातपृषतपरसण्डधमानकालीप्रबालान्तरङ्गम, क्वचिवनन्यसामान्योन्यानु तद्रवरकुदेने वाले दर्शनवाला कैसे हो सकता है ? इसका समाधान यह है कि जो अक्षयकालदिन । जिसमें जरा भी कहीं पर क्षय करनेवाले सिंह, ज्याघ्रादिकों का अवसर नहीं है और निश्चय से नष्टदिग्दिनाधिपेन्दुदर्शन) सघन होने के कारण जिसमें पूर्वादि दिशाएं नहीं जानो जाती एवं चन्द्र-सूर्यादि भी दिखाई नहीं देते, ऐसा है।' तथा च---किसी स्थान पर जिस पर्वत को लताओं से आच्छादित प्रदेश वाली गुफा का मध्यभाग ऐसी व्याघ-कामिनियों से किये हुए फूत्कार से अव्यक्त वाचालित है, जो कि तोतों की प्राणवल्लभाओं ( मैनाओं) के मुख की चपलता से नीचे गिरे हुए दाडिम फलों की रक्षा के ग्रहण में प्रारम्भ किये हुए व्याध-युद्ध के मध्य सुद्धनिवारण के लिए प्रविष्ट हुई थीं। किसी स्थान पर जहाँ पर गाल-समूह विस्तृत लताओं की बाड़ियों में विलम्ब करते हुए जंगलो बैलों अथवा वानरों द्वारा भयभीत कराये गये मृगों के पलायन (भागने) के अतिशय से भयभीत किया गया है। जहां पर पृथिवी का अग्रभाग वहत सी बामियों से निकली हुई सापों को कांचलियों के दर्शन से कुपित हर मयुरी के बच्चों के द्रणयुक्त नखों में चोचों द्वारा विदीर्ण किया जा रहा है। किसी स्थान पर, जहाँपर निरन्तर मृगों के मार्ग की खोज करने से उत्पन्न हुए कष्ट से दुःखित हुए भोल-बालकों से चुण्टन की गई रेत की वावड़ियों के जल को देखने से व्याकुल हा जंगली कुत्तों के द्वारा पर्वत की नदियों का वालुकाद्वीप प्रविष्ट करने के लिये अशक्य है। किसी स्थान पर जो चौर-समूह के बाणों द्वारा ताड़ित हुए वृद्ध शूकरों के कर्कश शब्दों से गिरते हुए हिरणियों के गर्भो से व्याप्त है । किसी स्थान पर, जहाँ पर मदोन्मत्त भैसा-समूह से किये हुए युद्ध में सींगों के प्रहार द्वारा उछलते हुए अग्नि-कणों के संगम से वृक्षों का उपरितन प्रवाल-समूह विध्वंस किया जा रहा है। किसी स्थल पर सिंह के चरणों पक्षों ) द्वारा विदीर्ण किये हुए हाथी के गण्डस्थल से ऊर्व प्रवाह रूप से उछलते हुए रुधिर से, जहाँ पर आकाशरूपी छत्र के लाल रत्नमयी दण्ड का विस्तार किया जा रहा है। किसी स्थान पर, निरन्तर पर्यटन करने वाली वानर-श्रेणी द्वारा निकाले जारहे या उड़ाये जा रहे घोंसलों के मध्यभाग से उड़े हुए पक्षियों के पंखों से जहां पर आकाश व्याप्त हो रहा है। किसी स्थान पर विशेष ऊँचे वृक्ष-समूहों की श्रेणी पर क्रीड़ा से भयानक डाकिनियों से जहां पर सृष्टि भयङ्कर की गई है। किसी स्थान पर प्रचुर उल्लुओं के शब्दविशेषों द्वारा घुर्यमान ( हिलाये जानेवाले ) जीर्ण वृक्षों की कोटरों में काकिनियों का समूह, जहाँ पर प्रसूति १. विरोधाभासालंकारः। २. भासिमानलंकारः।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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