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________________ तृतीय श्राश्वासः ૧૪૨ अकथितं दशमटिका कथितं द्विगुणाश्व थाः पयः पथ्यम् । रूपामोदरसावं यावत्तावधि प्राश्यम् ॥ ३५९ ॥ ags भक्ष्यार्णा स्वदते राध्यतेऽपि च । उष्णोष्णाः सर्पिषि स्नाता यावन्नाङ्गाराचिताः ॥ ३६० ॥ दागमवेदिभिर्निगदितं साक्षादिदानुगाँ षयेषु रसायनाय पठितं सचो जरानाशनात् । यस्सारस्वतकल्पकान्तमतिभिः प्रोक्तं धियः सिद्धये तसे काञ्चनकेत कविरसच्छायं मुद्दे स्साद्धृतम् ॥ ३६१ ॥ स्थौल्यं करोति हरतेऽनिलमेतदेकं योष्णतामुपगतं दधि तस्काचित् । सर्पिःखिता मलमुत्रकषाययुक्तं सेव्यं वसन्सवारदात पत्रावर्जम् । ३६२ ॥ नवनीतोद्धारं मथितं कथयन्ति समगुणं सुधियः । चिरमथितं पुनरुत्पत्तिकरं च न कस्य दोषस्थ ॥ ३६३ श्रीरं साक्षाज्जीवनं जन्मसाल्यासारोष्णं गश्यमायुष्यमुक्तम् । प्रातः सायं प्राम्यधर्मावसाने सुकेः पश्वादात्मसाम्येन सेव्यम् ॥ ३६४ ॥ वरावर समस्त शाक खानी चाहिए। दही के मध्य में डूबा हुआ भोजन ( दहीबड़ा आदि ) और पानी अग्नि में बिना औटाया ( उबाला ) हुआ से शुष्क - सूखा - भोजन नहीं खाना चाहिए' ।। ३५८ ॥ ( कथा ) दूध दश घड़ी तक पथ्य है, इससे अधिक समय तक का अपथ्य है और अग्नि में श्रौटाया हुआ दूध वीस घड़ी तक पथ्य है बाद में अपथ्य है। इसीप्रकार दही जबतक उज्वल और सुगन्धित है एवं जबतक खट्टा नहीं हुआ है तबतक खाना चाहिए ।। ३५९ ।। लड्डू आदि पकवान, जो कि चारों पर हुई चोरी कराई जाने से घी से तर होगए हैं और जो विशेष गरम हैं, जबतक खाये नहीं जाते तबतक उनका समूह स्वादिष्ट व प्रशंसनीय समझा जाता है ।। ३६० ।। हे राजन् ! सुबर्ण व सुवर्णकेतकी पुष्प की तरलता के समान घी आपको आनन्दित करे, जिसे इस संसार में वैदिक विद्वानों ने मनुष्यों की प्रत्यक्ष आयु बताया है, क्योंकि 'आयुर्वै घृतम्' अर्थात् निश्चय से घृत आयु है, ऐसा वेद वाक्य है। घी पीने से तत्काल बुढ़ापा नष्ट होजाता है, इसलिए वैयों ने आयुर्वेदशास्त्रों में जिसे मृगाङ्क आदि रसायन- सरीखा शक्तिवर्द्धक बताया है, [ क्योंकि 'युद्धोऽपि तरुणायते' अर्थात् घी पीने से वृद्ध भी जवान होजाता है यह आयुर्वेद की मान्यता है ] | इसी प्रकार सरस्वतीमन्त्र-माहात्म्य के प्रकाशक शास्त्र से मनोहर बुद्धिशाली मन्त्रशादियों ने जिसको बुद्धि की प्राप्ति का निमित्त बताया है ।। ३६१|| कभी भी गरम नहीं किया हुआ ( ठंडा ) दही शरीर को स्थूल करता है और अकेला ही वातनाशक है। इसे घी, आँवला और मूँग के पानी से युक्त करके वसन्त ( चैत्र व वैसाख), शरद (आश्विन व कार्तिक ) और प्रीष्म (ज्येष्ठ व आषाद) ऋतु को छोड़कर बाकी की तीन ऋतुओं मैं ( हेमन्त — अगइन ष पौष, शिशिर - माघ व फाल्गुन और वर्षाऋतु-- श्रवण व भादों) में खाना चाहिए" || ३६२|| तक (मठा) को, जिसमें से तत्काल मक्खन निकाल लिया गया है, विद्वानों ने बात, for a कफनाशक कहा है। [ क्योंकि आयुर्वेद में कहा है कि 'तक द्वारा अद से नष्ट किये गए रोग फिर से उत्पन्न नहीं होते ] परन्तु चिरकाल का ( परसों का ) मधा हुआ मट्टा किस दोष को उत्पन्न नहीं करता ? अपितु समस्त रोगों को उत्पन्न करता है || ३६३|| दूध जन्म से लेकर जीवन पर्यन्त हितकारक है, [ क्योंकि उत्पन हुआ बच्चा दूध पीकर ही जीता है ] इसलिए यह निश्चय से आयु को स्थिर करता है । आयुर्वेद में गाय का धारोष्ण ( तत्काल दुड़ा हुआ ) दूर आयु के लिए हितकारक कहा गया है। अतः सुबह, शाम और कामसेवन के पश्चात् एवं मुनियों को भोजन के पश्चात् दूध उतना पीना चाहिए, जितना ii 'जरानाशनं' क० । १. जाति अलंकार । २. जाति अलंकार । ३. अतिशयालंकार । ४. उपमालंकार । ५. समुच्चयालंकार । ६. तथा च भाषमिश्रः न तदग्धाः प्रभवन्ति रोगा भावप्रकाश से संकलित – सम्पादक ७. बापासंकार ।
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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