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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये स्थाल्यो यथानावरणाननायामहतार्या न साधुपाकः । समाप्तरितस्य तथा नरेन्द्र व्यायामहीनस्य च नानपाः ॥३३॥ मभ्यङ्गः भपातहा बलकरः कायस्य दाम्यावहः स्यादुद्भर्सनमणकान्तिकरयां मेवःकफालस्यति ।
मायुष्य सत्यप्रसादि वपुषः साहटम रवि च स्नानं देव यधसे वितमिदं शीतैरशीत लैः ॥३२॥ च्याधियों होती है। आयुर्वेद कार परक विद्वान् ने भी 'अतिमात्रा में व्यायाम करने से अत्यन्त थकावट, मन में ग्लानि व ज्वर आदि अनेक रोगों के होने का निरूपण किया है। व्यायाम न करनेवालों की हानि बताते हुए आचार्य श्री ने कहा है कि 'व्यायाम न करनेवालों को जठराग्नि का दीपन, शारीरिक उत्साह व दृढ़ता किसप्रकार होसकती है ? अपितु नहीं होसकती। आयुर्वेदकार चरक विद्वान ने भी रहा है कि 'व्यायाम करने से शारीरिक लघुता, कर्तव्य करने में उत्साह, शारीरिक इदता, दुःखों के सहन करने की शक्ति एवं वाद व पित्त-आदि दोषों का क्षय व जठराग्नि प्रदीप्त होती है। ताजी हवा में प्रसने के विषय में आचार्यश्री ने लिखा है कि 'जिसप्रकार उत्तम रसायन के सेवन से शरीर निरोगी व शखिशाली होता है उसीप्रकार शासल, मन्द ष सुगंधित वायु में संचार करने से भी मनुष्यों का शरीर निरोगी म शक्तिशाली होजाया है। उदाहरणार्थ-निश्चय से वनों में ताजी हवा में अपनी पश्चानुक्ल भ्रमण करनेवाले हाथी कभी बीमार नहीं होते। इसाप्रकार शारीरिक अक्नों में सुगन्धित तेल की मालिश करने के विषय में श्रीभावमित्र ने लिखा है कि शरीर के समस्त अङ्गों में नित्य तेल का मालिश करना शरीर ने पुष्ट करता है और विशेष करके शिर में, कानों में और पानी में तेल की मालिश करनी चाहिए। प्रकरण में 'सज्जन नाम के वेय ने उक्त लोक यशाधर महाराज से कहा ह॥३२२॥
हे राजन् ! जिसप्रकार ढकन-रहित ( खुलीहुई ) और असंचालित अन्नबाली (जिसके भीतर का अन्न टारा नहीं गया है) बटलोई के अन्न का परिपाक ( पकना ) नहीं होता उसीप्रकार निद्रा न लिये हए ष व्यायाम-हीन पुरुष के उदर के अन्न का परिपाक भी नहीं होता। निष्कर्ष-इसलिए भोजन को पचानेवाली उदापनि के उद्दीपित करने के लिए यथाविधि व्यायाम करना व यथेष्ट निद्रा लेना अनिवार्य है॥३२३॥ हे राजन् ! समस्त शरीर में तेल मदन खेद (सुस्ती व थकावट) और वात को नष्ट करता है, शरीर में बल लाता है, शारीरिक शिथिलता दूर करता है-शरार को दृढ़ बनाता है। इसीप्रकार हे राजन् ! स्नानीय चूर्ण से किया हुश्रा पिलेपन शरीर को कान्तिशाली बनाता है एवं मेदा (थी), कफ व आलस्य को दूर करता है। हे देव ! उष्ण व शीत-ऋतु के अनुसार क्रमशः ठण्डे व गरम पानी से किया हुमा स्नान घायु को बढ़ाता है, मानसिक प्रसन्नता उत्पन्न करता है एवं शरीर की खुजली 4 म्लानि को नष्ट करता है। निष्कर्ष--अतः स्वारथ्य-रक्षा के लिए तेल की मालिश, स्नानीय चूर्ण का विलेपन
1. तया च सोमदेवरि:-बलाप्तिक्रमेण व्यायामः का नाम नापदं जनयति ॥ ५ ॥ १. तवा चरकः-प्रमः क्लमः यस्तृष्णा र कपित्तं प्रतामकः । अतिव्यायामत: कासो अरछवि जायते ॥१॥ ३. तथा च सोमदेव -मध्यायामशीलेषु कुतोऽमिदीपनमुत्साही देहदाय च ॥ १ ॥ ४. तवा च चरकः-लायचं कर्मसामध्य स्थैर्य दुःखसहिष्णुता । दोपक्षयोऽग्निवृद्धिक व्यायामादुपजायते ॥१॥ ५. सपा च सोमदेवर्ति:-पच्छन्दवृत्तिः पुरषाणो परमं रसायनम् ॥ १ ॥
बमानमतमीहानाः किल काननेषु करिणो न भवास्यास्पद व्याधीनाम् ॥ १ ॥
मौतिवाक्यामृत ( भाषाठीका समेत ) पृष्ठ ३१४-३१५ से संकलित---सम्पादक पाति-मलंकार । ५. रचन्तालधार ।