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यशस्तिलकच-पूकाव्ये देव, सालस्वभावस्य देवस्यामास्पदेस्यानामाकल्पोदाचः प्रतिक्रियाप्रपञ्चश्च साधुसायोगेनुरागे च कारणम् । तत्र कामीयामेतात्पर्यम् । सधादि-सस्पुरुषपृचतवधाय व्यावस्याखिलासंवरणं पतावरणमिवामात्यानस्य लम्बाञ्चलक चोलकम् , मुग्धमीनबन्धनानाय व महाकायः कर्मश निकायः, कपटयकोटपटकघरनाय सर हवादारमुदरम्, परप्यसनान्वेषणाय मगर्तस्व मन्दमन्माचार: पावप्रचारः, कामेते खलु पासालस्थाकरस्या मम भविष्यन्ति शेषशिलामणय इसि लुण्टाकतवेध मुर्मुहुर्जलेषु निमज्जनम, केदाह्य मी गगनचरा; कदनकन्दकविनोदकरा मम भविष्यन्ति रविरथतुरकर हत्यपजिहीर्षववादितिसूतांपासनम्, अरं हताश हुताश, मषि सत्याश्रयाने सर्वाश च कथं नाम तन्नामवान्भवानितीर्य गवाहुतिमिपेण विषमरोचिताडनम् , सुप्रयुक्त दम्भस्य प्रमाप्यन्तं न गच्छतीति मनीषया साधुअनशकनिहननाय द्वीपिद्विजोहरीपनामिष देवतार्चनम् , कियन्सो मया महान्तः प्रतारिताः कियन्तो नापीति संभालनागेप जपत्यवसायः, कुशलशकुलाशनाय बकस्यैव
हे राजन् ! सरल । अकुटिल ) प्रकृतिशाली आपके मन्त्रीरूपी राक्षस जो कायले (गेरुआ) रंगवाले वस्त्रादि का वेष धारण करते हैं और स्वामी के ऊपर आनेवाली विपत्तियों से बचने के उपायों का विस्तार करते हैं, उक्त दोनों बात उनको सज्जनता की प्रानि में एवं राजा को उनके ऊपर प्रसन्न करने में कारण हैं। हे राजन् ! उन कषायल रंगवाले कलादिका वेप धारण करने आदि में इन मान्त्रयों का निम्रप्रकार रहस्य ( गुप्त अभिप्राय ) है
हे राजन् ! आपका अमात्यजन, जो कि सज्जन पुरुषरूपी हिरणों का उसप्रकार वध करता है जिसप्रकार बहेलिया हिरणों का बध करता है एवं उनका घात करने के लिए यह समस्त शरीर को आनछादित करनेघाला, वर्षा से बचानेवाला एवं लम्बे प्रान्त भागवाला चालक ( पहिरने का शुभ्र अँगरखा ) पहिनता है। हे राजन् ! जिसप्रकार जाल मछलियों के बाँधन में समर्थ होता है उसीप्रकार आपके मन्त्री का विशाल दादी के बालों का समूह भी मूर्ख पुरुषरूपी मछलियों के बांधने में समर्थ है। आपके इस अमात्यजन का विशाल उदर (पेट) कपर्टः पुरुषरूप। बगुला क समूह के उद्योग करने का उसप्रकार स्थान ह जिसप्रकार तालाब अगुलों के मुण्ड क घात करत क उद्याग का स्थान हाता ह। राजन् ! यह मन्त्रीजन दूसर राजकर्मचारियों के व्यसनों ( मद्यपान-आदि बुरा आदता या अवस्थाओं) के दखन के लिए उसप्रकार धार धारे संचार करनेवाले परों से गमन करता ह जिसप्रकार शृगाल (गादड़) धार धार संचरणवाला पेर-संचार करता है। हे राजन् ! जल में चार बार बुबका लगाता हुआ आपका अमात्यजन सा प्रतात होता ह-मानों-'ये शेषनाग का फणा में स्थित हुए रत्न फिसप्रकार मर हस्तगत होग' इसप्रकार साचता हुआ चोर ही आभषणों की प्राप्ति हेतु जल में उबका लगा रहा है। राजन यह अमात्यजत जो श्री सर्य की उपासना क है, वह माना- इसलिए ही करता हु कि 'निश्चय स य आकाश में सचार करनेवाले सूर्य-रथ के घोड़े, जो कि युद्धरूपी गेंद से कंाड़ा करनेवान हैं, कब मुझ प्राप्त होग? इसप्रकार उन्हें अपहरण करने की इच्छा से . ही ऐसा कर रहा है। हे राजन ! जो मन्त्रीजन निम्नप्रकार की इर्ष्या से हा मानों-आहुति देने के बहाने . से अनि तानि कर रहा है कि 'हे भाग्य-हीन अग्नि । जव में ( मत्रा) आश्रयाश (जिस स्थान से उत्पन्न हुआ उसका भक्षक) और सर्वा . ( ममम्त का भक्षण करनेवाला) मोजूद हूँ तब तुम उस नामवाले आश्रयाश ।
और सर्वाश किसप्रकार हो सकत हो? अपितु नहीं हो सकते।' इसप्रकार अग्नि से ईयां करने के । कारण ही माना-आहुति के बहाने से अग्नि को नाड़ित कर रहा है। हे राजन् ! 'अमात्यजन द्वारा युक्तिपूर्वक किच हुए छल-कपट का पार जब ब्रह्मा भा नहीं पासकता तब दूसरे का तो कहना ही क्या है। इस बुद्धि से ही उसकी दवपूजा मानों-सज्जन पुरुपरूपी चटक-आदि पक्षियों के घाट करने के लिए वाज पर्सा का पोपण ही है। कितने सत्रुप मेरे द्वारा धोखे में डाले गए। और कितने नहीं डाले गए? इसप्रकार स्मरण करने के लिए ही मानों-जिस मन्त्री का जप-व्यापार