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________________ तृतीय आवासः ንቐጽ हैं कि 'यदि अच्छे पुरुष को दूसरा अन्धा लेजाता है तो भी क्या वह सममार्ग ( ऊबड़-खाबड़ -रहित मार्ग) देख सकता है ? अपि तु नहीं देख सकता । सारांश यह है कि उसीप्रकार यदि मूर्ख राजा भी मूर्ख मंत्र की सहायता से सन्धिविग्रहादि राज-कार्यों की मन्त्रणा करे, तो क्या वह उसका फल ( विजय लक्ष्मी व अर्थ लाभ आदि ) प्राप्त कर सकता है ? अपि तु नहीं कर सकता । शुक्र' विद्वान के उद्धरण का भी उक्त अभिप्राय है ॥ १ ॥ घन लम्पट राजमंत्री से होनेवाली हानि का कथन करते हुए आचार्य श्री लिखते हैं कि 'जिस राजा के मन्त्री की बुद्धि धन महण करने में लम्पट भासक होती है, उसका न तो कोई कार्य ही सिद्ध होता है और न उसके पास धन ही रह सकता है। गुरु विद्वान के उद्धरण द्वारा भी उक्त बात का समर्थन होता है। उक्त बात की दृष्टान्त द्वारा पुष्टि करते हुए प्रस्तुत नीतिकार लिखते हैं कि 'जब कोई मनुष्य किसी की कन्या के साथ विवाह करने के उद्देश्य से कन्या देखने के लिए अपने संबंधी (मामा आदि ) को भेजता है और वह यहाँ जाकर स्वयं उस कन्या के साथ अपना बिवाद कर लेता है तो विवाह के इच्छुक उस भेजनेवाले को तपश्चर्या करनी ही श्रेष्ठ है क्योंकि स्त्री के बिना तप करना उचित है। प्रकरण में उसीप्रकार यदि राजा का मंत्री धन-लम्पट है तो उसे भी अपना राय छोड़कर तपश्चर्या करना श्रेष्ठ है, क्योंकि धन के बिना राज्य नहीं चल सकता और धन की प्राप्ति मन्त्री आदि अधिकारी वर्ग की सहकारिता से होती है' । शुक्र" विद्वान लिखता है कि 'जिस राजा का मंत्री कुत्ते के समान शक्ति व सकानों का मार्ग ( टेक्स आदि द्वारा अप्राप्त धन की प्राप्ति और प्राप्त की रक्षा आदि) रोक देता है, उसकी राज्य स्थिति कैसे रह सकता है ? अपि तु नहीं रह सकती' ॥ १ ॥ बात को दूसरे दृष्टान्त द्वारा समझाते हुए प्रस्तुत नीतिकार लिखते हैं कि 'यदि थाली अन आदि परोसा हुआ भोजन स्वयं खा जावे तो खानेवाले को भोजन किसप्रकार मिल सकता है ? उसोप्रकार यदि मंत्री राज्य- द्रव्य को स्वयं हड़प करने लगे तो फिर राज्य किसप्रकार चल सकता है ? अपि तु नहीं "चल सकता। बिदुर नीतिवेता विज्ञान ने कहा है कि 'जिस गाय का समस्त दूध उसके बड़े ने भा देकर पीडाला है, उससे स्वामी की तृप्ति हेतु छाँध किसप्रकार उत्पन्न हो सकती है ? अपि तु नहीं हो सकती, इसीप्रकार जब राजमंत्री राजकीय समस्त धन हड़प कर लेता है तब राजकीय व्यवस्था (शिष्ट-पासन दुष्ट-नि- आदि) किस प्रकार होसकती है ? अपि तु नहीं होसकती, इसलिए राजमंत्री धन लम्पट नहीं होना 'चाहिए' ॥ १ ॥ प्रकरण में 'शङ्खनक' नामके गुप्तचर ने यशोधर महाराज के प्रति दुष्ट मन्त्रीषाले राजा के राज्य में रहने से प्रजा की हानि उक्त दृष्टान्त द्वारा कही है" ।। १३१ ॥ १. तथा च शुक्रः अन्धेनाकृष्यमाणोऽत्र वेदन्धो मार्गवीक्षकः । भगेत्तन्मूर्ख भूपोऽपि मंत्रं चेत्यज्ञमंत्रिणः ॥१॥ नीतिवाक्यामृत. १८३ से संकलित - सम्पादक मन्त्रिणोऽर्थमणलालसायां मतौ न राज्ञः कार्यमर्यो मा ॥१७ ! १. तथा च सोमदेव ३. तथा च गुरुः यस्य संआयते मंत्री पित्तमहणलालसः । तस्य कार्यं न सिध्येत भूमिपस्य कुतो धनं ॥१॥ ४. सभा च सोमदेवसूरिः- वरणार्थं प्रेषित इव यदि कन्यां ५. तथा च शुक्रः — निरुणद्धि सतां मार्ग स्वमाश्रित्य शंकितः ६. तथा च सोमदेवसूरिः - स्थाल्येव भक्तं चेत् स्वयमश्नाति कुतो मोक्तुतिः ॥१ ॥ परिणयति तदा परमित्त एवं रचम् ॥१ साकार: सचिन बस्व तस्थ राज्यस्थितिःव्रतः॥१॥ ७. तथा च विदुरः युधमाक्रम्य चान्येन पीतं मत्तेन गौ यदि । तदा ततस्तस्याः स्वाभिमस्तु ॥१॥ ८. डान्तालसर । १८९ क
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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