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सूतीय आश्वासः अभिस्वा शकसंघातं यः पराक्रमते भूपः। स तुङ्गस्तम्बसंझनवीरणाकर्षकायते ॥ १६ ॥ शक्तिहीने मतिः कैच का शक्तिमसिबजिसे। नपस्य * तस्य अष्टान्तः परधश्च कथ्यताम् ॥ १६ ॥ दूरस्थानपि भूपाल शेत्रेऽस्मिरिपक्षिणः । पलोपछमहाघोषैः क्षिपापणिहस्तवत् ॥ ९ ॥
भाषार्थ-प्रस्तुत नीतिकार आचार्यश्री ने कहा है कि 'पात्रदान न करनेवाले लोभी का धन शहद के छत्ते सरीखा नष्ट होजाता है। सर्गर तिदान के उद्धरण का अभिप्राय यह है कि 'पात्रों को दान न देनेवाला लोभी उसी धन के साथ राजाओं और चोरों द्वारा मार दिया जाता है ॥ १॥ निकर्ष-प्रकरण में उक्त मंत्री यशोधर महाराज के प्रति दाननोति न करनेवाले राजा की हानि उक्त दृष्टान्त द्वारा समर्थन कर रहा है ॥४॥
जो राजा शत्रुसमूह में भेद ( फोड़ना ) न करके युद्ध करने के लिए उत्साह करता है, वह ऊँचे वृक्ष के स्कन्ध-प्रदेशों पर लगे हुए बाँस वृक्ष के खींचनेवाले सरीखा आचरण करता है। श्रथोत्-जिसप्रकार ऊंचे वृक्ष के स्कन्धों पर लगे हुए बॉस-वृक्ष का खींचना असंभव होता है असीप्रकार शत्र-सम में भेद हाले बिना शक्समह पर. विजयश्री प्रास करना भी असंभव है। भावार्थ-विजयश्री. के इच्छुक राजा को शत्रुओं के कुटुम्बियों को उसप्रकार अपने पक्ष में मिजाना चाहिए जिसप्रकार श्रीरामचन्द्र ने शत्रुपक्ष (रावण) के कुटुम्बी ( भाई ) विभीषण को अपने पक्ष में मिलाया था ।। ६५॥
हे राजन् ! पराक्रम व सैन्य-शक्ति से हीन राजा का राजनैतिक ज्ञान क्या है ? अपितु कुछ नहींनिरर्थक है। इसीप्रकार राजनैतिक ज्ञान से शून्य राजा की शक्ति ( पराक्रम व सैन्य-शक्ति) भी क्या है? अपि तु कुछ नहीं है। उदाहरणार्थे-जिसप्रकार शक्तिहीन लगड़े का ज्ञान निरर्थक है और मान-हीन अन्धे की शक्ति निष्फल होती है। अर्थात्-जिसप्रकार लँगड़ा शक्ति ( चलने की योग्यवा) हीन होने के कारण मान-युक्त होता हुआ भी अभिलषित स्थान को प्राप्त नहीं हो सकता उसीप्रकार पराक्रमशक्ति से हीन हुआ राजा राजनैतिक भानशाली होने पर भी अभिलषित वस्तु (राज्य-संचालनभादि ) की प्राप्ति नहीं कर सकता एवं जिसप्रकार अन्धा पुरुष ज्ञान-शून्य होने के कारण शक्ति ( पलने को शक्ति ) सम्पन्न होता हुआ भी अभिलषित स्थान पर प्राप्त नही हो सकता उसीप्रकार राजनतिक ज्ञान से शून्य हुआ राजा भी पराक्रमशक्ति सम्पन्न होने पर भी अभिलम्ति पदार्थ ( राज्य-संचालन आदि कार्य) प्राप्त नहीं कर सकता। भावार्थ-इम प्रस्तुत विषय स स्पष्टीकरण श्लोक नं.८१ की व्याख्या में कर चुके हैं।। ६६ ।।
हे राजन् ! आप इस उज्जयिनी राजधानी में स्थित हुए दूरवर्ती भी शत्रुरूप पक्षियों के सैन्य, पाषाण व महान् शब्दों के प्रेषण से उसप्रकार प्रेरित ( नष्ट) करो जिसप्रकार गोलागोफणपाषाण सहित गुँथने-को हाथों पर धारण करनेवाला मानव दूरवर्वी पक्षियों या शत्रुओं के पापाण
*'तत्र' - क्षिपणिहस्तक्त्, क.। . १. तथा च सोमदेवरिः-तीर्यमनासंभावयन् मधुच्छनामिप सामना पिन्वयति । ३. तथा च वर्ग:-यो न यच्छति पात्रेभ्मः स्वधनं कृपणो जनः । तेनैव सह भूपालेचौरा र हन्यते ॥ १॥
नौतिवारवामृत पृ०४१ से समुश्त-सम्पादक ..टान्त व सहोकि भलंधर। ४, उपमाऊंकार । ५. भोपालघर र उपमानहार ।