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________________ यशस्तिलकचम्पूकाव्ये न स्वयि तीजमप्येतस्परनारीसहोरे । नयविक्रमसंपन्ने र नाम्प्रदापि स्वधि ॥ १ ॥ उदयः समता हानिम्त्यः कामा महीभुजाम। तत्राय एवं योद्धज्यं स्थातव्यमुभयोः पुनः ॥ ८ ॥ हे राजन् ! जब आप परस्त्री के लिए बन्धु सरीखे हैं। अर्थात्-जब श्राप दूसरों की स्त्रियों के साथ बहिन का बर्ताव करते हैं तब श्राप के प्रति कोई परस्त्री संबंधी शत्रुता भी नहीं करता एवं जब आप नीति (गजनैतिक झान व सदाचार सम्पत्ति) से अलङ्कत तथा पराक्रम-शाली है तब आप में दूसरे के धन प्रण-आदि से होने वाली दूसरी शत्रुता भी नहीं है।' भावार्थ-प्रस्तुत नीतिकार सोमदेवसूरि' ने कहा है कि 'सदाचार लक्ष्मी राज्यलक्ष्मी को चिरस्थायी बनाने में कारण है। शुक्रविदान' के उद्धरण का अभिप्राय है कि 'जो राजा अपने नैतिक ज्ञान की वृद्धि करता हुआ लोकव्यवहार-सदाचार में निपुण है, उसके क्रमागत राज्य की श्रीवृद्धि होती है। प्रस्तुत नातिकार ने कहा है कि 'जो राजा कम-नाति ( सदाचार व राजनैतिक ज्ञान) और पराक्रम ( सैनिकशक्ति ) इनमें से केवल एक ही गुण प्राप्त करता है उसका राज्य नष्ट होजाता है। शुक्र विद्वान् ने कहा है कि 'जो राज्य जल के समान (जिसप्रकार पाताल में स्थित हुआ जल यंत्र द्वारा खींच लिया जाता है) पराक्रम से प्राप्त कर लिया गया हो परन्तु बुद्धिमान् राजा जब उसे नष्ट होता हुआ देखे तब उसे राजनीति ( सन्धि, विग्रह, यान ष श्रासन-श्रादि एवं सामादि उपायों) से उसे पूर्व की सरह सुरक्षित रखने का प्रयत्न करना चाहिए।' नारद के उद्धरण का अभिप्राय यह है कि 'जो राजा पराक्रम-हीन होने के कारण युद्ध से विमुख हो जाता है, उसका कुल परम्परा से चला आ रहा राज्य नष्ट हो जाता है। प्रकरण में प्रस्तुत मंत्री यशोधर महाराज से कहता है कि हे राजन् ! जब आप उक्त नीतिशास्त्रोक्त प्रशस्त गुणों-नय (राजनैतिक ज्ञान व सदाचार सम्पत्ति ), पराक्रम एवं परस्त्री के प्रति भगिनीभाव (जितेन्द्रियता) से विभूषित है तब आप के प्रति अनीति से उत्पन्न हुई किसी प्रकार की शत्रुता कौन रख सकता है। निष्कर्ष जब आप स्वयं निष्कण्टक ( शत्रु-हीन ) हैं तब श्रापका राज्य भी निष्कण्टक है एवं उसका कारण आपका राजनैतिक झान व सदाचार सम्पत्ति तथा पराक्रम शक्ति है' ॥१॥ हे राजन् ! विजिगीषु राजाओं के सन्धि व विप्रह-आदि के सूचक तीन काल ( अवसर) होते हैं। १-उदयकाल, २-समताकाल और ३-हानिकाल । -उदयकाल-जब विजिगीषु राजा शत्रुभूत राजा की अपेक्षा प्रभुशक्ति ( सैन्यशक्ति व खजाने की शक्ति), मंत्रशक्ति ( राजनैतिक ज्ञान की सलाह ) व उत्साहशक्ति ( पराक्रम व सैन्य-संगठन ) से अधिक शक्तिशाली होता है तब उसका वह 'उदयकाल' समझा जाता है। २-समताकाल-वह १. तया च सोमदेव सूरः-आचारसम्पत्ति कमसम्पतिं करोति ॥१॥ २. तया च शुक्र:-लोचित व्यवहारं यः कुरुते नयवृदितः । तवया वृद्धिमायाति राज्यं तत्र क्रमागतम् ॥१॥ ३. तया च सोमदेवरि:-क्रमविक्रमयोरन्यत्त रपरिग्रहेण राज्यस्य दुष्करः परिणाम: ॥१॥ ४, तथा च शुक्र:-राज्य हि सलिलं यद्वयरलेन समाइतम् । भूयोपे तसतोऽभ्येति लरुश्रा कालस्य संक्षयम् । ॥१॥ ५. सपाच नारदः-पराक्रमच्युतो यस्तु राजा संग्रामकातरः । अपि क्रमागतं तस्य नाशं राज्य प्रगच्छति ॥१॥ नौतिवाक्यामृत ( भाषाका-समेत ) पृ. ७३.५४ से संकलित-सम्पादक ६. रूपकालकार व हेतु-बलकार।
SR No.090545
Book TitleYashstilak Champoo Purva Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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