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द्वितीय आश्वासः
न काम जवेन कर्मणा परैरतुल्याः परमेण वायुषा ।
महीभुवां भाग्यवान्महीतले कृता बसरास्त्रिविधा मतः ॥ १८९ ॥
महाभ्योऽमी सन्तोऽयमितबलसंपन्न वपुषो यदेवं तिष्ठन्ति क्षितिपशरणे शान्तमतयः । सदन श्रद्धेयं गजनयधैः कारणमिवं मुनीन्द्रार्णा शापः सुरपतिनिदेशश्च नियसम् ॥ १९०॥
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अनेकसमरसंप्रहास्थ विजय प्रशस्तिशृङ्गारितगात्रः शालिहोत्रः कटिकाछबृहस्पते कुम्भिनीपते, तथैव मन्मुखेनापि साथ शौर्यनिर्जिताशेषद्विषदाचार्य परिषदेव स्थाईणावन्तमर्वन्यं विज्ञापयति तथाहि । देव मित्र महात्यमन,
ऐसे हाथी, जो कि पराक्रम, शरीर, वेग और क्रिया ( व्यापार ) तथा उत्कृष्ट आयु इन गुणों में दूसरे प्राणियों से अनोखे हैं । अर्थात् जैसे विशेष पराक्रम, विशेष स्थूलता व विशाल शरीर आदि गुण हाथियों में पाये जाते हैं वैसे किन्हीं प्राणियों में नहीं पाये जाते, इसलिए हाथियों ने राजाओं के विशेष पुण्योदय के कारण ही स्वर्ग से अवतीर्ण होकर इस पृथिवी मण्डल पर जन्मधारण किया है' ।। १८८६ ॥
ये हस्ती महान ( गुरुतर) और सीमातीत ( वेमर्याद ) पराक्रम-युक्त शरीर धारक होते हुए भी जो राजमन्दिर में अपना चित्त क्रूर न करते हुए शान्त रहते हैं, इस संसार में इसका कारण गजशास्त्र नीतिशास्त्र के विद्वानों को यह जानना चाहिये कि इसमें मुनीन्द्रों द्वारा दिया हुआ शाप और इन्द्र की याही कारण है। भावार्थ - लोक में प्रचुर शक्तिशाली ( पराक्रमी ) योद्धा क्रूर चिन्तवाले देखे जाते हैं परन्तु हाथियों में इसका अपवाद पाया जाता है । अर्थात् ये महान और निस्सीम पराक्रमशाली होने पर भी राजमहल में स्थित होते हुए शान्त रहते हैं -- कुपित नहीं होते। इसमें गजशास्त्रज्ञ व नीतिनिष्ठों को यह कारण जानना चाहिये कि मुनीन्द्रों ने हाथियों को यह शाप दिया है कि तुम्हें राजमन्दिर में शान्त रहना होगा और इन्द्र की श्राशा पालन करनी होगी ।। १६० ।।
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(इस्तिसेना प्रमुख 'उद्धताश' के निवेदन करने के पश्चात् ) शालिहोत्र ( अश्वधोड़ा --- सेना प्रमुख ) मेरे ( यशोधर महाराज के ) समक्ष 'विजयवैनतेय' नामक श्रेष्ठ घोड़े की उन महत्वपूर्ण विशेषताओं ( प्रशस्तगुण, जाति व कुल आदि ) का निरूपण करता है, जिन्हें 'प्रतापवर्द्धन' सेनापति ने अश्वपरीक्षा-निपुण विद्वन्मण्डली द्वारा परीक्षा कराकर प्रस्तुत यशोधर महाराज के प्रति कहलवाया था-
_ युद्ध के अवसर पर किए गए निष्ठुर प्रहार सम्बन्धी आघातरूपी विजय प्रशस्तियों (प्रसिद्धियों) से सुशोभित शरीरणाले 'शालिहोत्र' नाम के अश्वसेना प्रमुख ने प्रस्तुत यशोधर महाराज से निम्न प्रकार निवेदन किया- कलिकाल में बृहस्पति सरीखे महाबुद्धिशाली, पृथिवीनाथ हे राजाधिराज ! आश्चर्यजनक पराक्रम द्वारा समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनेवाली व अश्व (घोड़ों) परीक्षा- निपुण विद्वत्परिषत् ने, प्रतापवर्द्धन सेनापति की आज्ञानुसार परीक्षा करके उद्धताङ्कुश की तरह मेरे मुख से भी पाद- प्रक्षालनादि पूजा-योग्य 'विजयवैनतय' नामक अश्वरत्न के विषय में आपके प्रति निम्नप्रकार विज्ञापन कराया है
हे राजन! वह 'विजयवैनतय' नाम का अश्वरत्न ( श्रेष्ठ घोड़ा ) शारीरिक उत्पत्ति की अपेक्षा उस प्रकार भद्रजाति ( सुन्दर व सचिक्षण रोम व त्वचा युक्त, आनन्दजनक शरीर व संघारशाली, बुद्धिमान, विषादशून्य एवं भयभीत न करनेवाला ) का है जिसप्रकार श्राप का सुन्दर शरीर भद्रजाति ( श्रेष्ठ क्षत्रिय-जावि )
१. जाति - अलंकार । १. अनुपमालंकार । ३. उर्फ
साविक श्लक्ष्णं रोम स्वक्लुखसंचारविमदः । मुद्धिमानविषादी च भद्रः स्यात्त्रासवर्जितः ॥ १ ॥