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द्वितीय प्रापासः बधिरपति दिलोपदेशेषु भवणयोः, मिपाख्यवि व नियमेन दुरन्तासू ताg *पसनसंवतिषु। पौवनाविभावः पुनः सानपुत्राणां भूतावतार व हेतुरात्मविसम्बनल्य, प्रसवागम श्व कारण मत्स्य, सम्माक्ष्योग व प्रसवभूमिवामविलसितस्य, *मदनकोरकोपयोग इव व निदानमनथपरम्परापाः। तदुभवस्थाप्युपस्थितस्यान विकमा समागमसुन धर्मसहि सथानुमब पथा म भवसि परेको सवन्तरायविषयः । st यानि पावती ने यस्मा प्रणयपरता पजाते रतिश्च ।
लक्ष्म्यास्तस्याः सकलनपतिस्वैरिणीचिभाजक प्रेमापो भवतु तवीलोकपिप्लाविकायाः ॥ १६॥
यस्मिन् रमः प्रसरति स्मलितादियोचैरास्यादिव प्रवक्ता समसकास्ति । अन्धा बना देती है और कल्याणकारक उपदेशों के श्रवण में कानों को अहिरा बना देती है एवं मयार परिणाम ( भविष्य ) बाले व्यसनो - ( वाक्पारुष्य-आदि अथवा दुःख-समूहों) में निश्चय से गिय देती है। इसीप्रकार राजकुमारों की प्रकट हुई युवावस्था उसप्रकार उनके दुख का कारण है जिसप्रकार शरीर में पिशाच-प्रवेश दुःख का कारण है। जिसप्रकार मद्यपान मद (दर्प-नशा) उत्पन्न करता है उसीप्रकार यह युवावस्था भी राजकुमारों के हृदय में मद (अभिमान) उत्पन्न करती है। इसीप्रकार यह उसप्रकार महानवृद्धि की उत्पत्ति भूमि है जिसप्रकार बात-रोगी की बातोल्वणता अज्ञान-वद्धि (मूळ-वृद्धि) की सपचि भूमि है और यह उसप्रकार अनर्थ-परम्परा ( कर्तव्य-नाश की श्रेणी अथवा दुःख-परम्परा ) का कारण जिसप्रकार मादक कोदों का भक्षण अनर्थ-परम्परा का कारण है। इसलिए पयक्रम से उन्नविशील हे पुत्र! तुम प्रास हुए उन दोनों का प्रेम (पज्यलक्ष्मी और युवावस्था की प्रासिरूप सुख) उसप्रकार धर्म-पूर्वक भोगों जिसके फलस्वरूप तुम उन दोनों के सुख भोगने में शत्रुओं द्वारा विघ्न-बाधाएँ सपस्थित करने योग्य न होने पाओ ।
क्योंकि-कौन धर्म धुरि पुरुष, समस्त राजाओं के साथ कुसटा का माचार मामय करनेवाली (व्यभिचारिणी ) व लोक को धोखा देने में असुर ऐसी लक्ष्मी के साथ प्रेमान्ध होगा ? अपि तु कोई नहीं। जिसका (लक्ष्मी का) पिता जड़निधि (श्लेषालकार में उभौर ल का अभेद होने से जलनिधि-समुद्र व पत्तान्तर मैं जदनिधि-मूर्खता की निधि ) और जिसका छोटा भाई कालकूट (विष व पक्षान्तर में कालकूट मृत्यु की कारण)है। इसीप्रकार जिसकी स्नेहतस्परता कृष्ण ( भीनारायण व दूसरे पक्ष में कृष्ण मलिन हदय) के साथ एवं जो पाजात (कमल व पक्षान्तर में पापी पुरुष) के साथ प्रेम करती है।॥१६० ।।
जिस युवावस्था के प्रकट होने पर युवक पुरुष का उसप्रकार विशेष अपवाद होने लगता जिसप्रकार पाप-प्रवृत्ति से मानष का विशेष अपवाद होता है। जिसके प्रकट होने पर भज्ञान की प्रौदता उम्रप्रकार होती है जिसप्रकार अंधे होजाने से अज्ञान की प्रौढ़ता (विशेष वृद्धि होने लगती है। इसीप्रकार जिसके प्राप्त होने पर सस्व गुण (प्रसमता गुण---नैतिक प्रवृत्ति ) कामरूप पग्नि से
* 'मास सासु' इति क, ग, पः। AB
* प्रसकासमागम इव कारणं मवस्प, उन्मादयोग इव असम्बद्यालापासिनिवेशवित्रामस्थानं प्रसवभूमिरियाविर पाठान्तरं क, व प्रतियुगले | A. मदिरा । B. हेतुः । C. उत्पत्तिभूमिः । *. कोद्रवमोजनयत सटि• प्रति से संकलित । * पायोच पारध्यमर्थषणमेव च । पानं श्री मृगया पूतं व्यसनानि महीपतेः ॥१॥
४. लि. सटि- प्रतियों से संकलित-सम्पादक १. ख-भलंकार ।