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शतिशतभन्ने भारतिमपुत्रवता जुरीमः बीचोवनोत्पविकासप्रवीणः । खोपावनयाशकिरणोदन संमदवातम्यमममहोसवेन ... धर्मः पल्लवितः मिथः समिताः कामः फलैः सम्यते पंशत मितिनाथ संप्रवि परां छायर्या भितः कामपि ।
भूदेवी महतार्थतामुपगता मूलाम्बपामा पुनरिवते. माति म देव सान्निवरसस्वस्त्रजन्मोत्सनः ॥ ७ ॥ या। सानम बम्विादः स्वचिक्ष्वनिपतिः स्स्यते प्रार्थितान्धूनां टिवानैः क्यक्तिनुमुवः सौषिदस्वारस्वरन्ते।
भाप लक्ष्मीमियमनुमवतात्पुत्रपौत्रैव सा देवील्पेवं पुरोषा: क्वचिदपि च परस्याभिषः कामितमी: ॥८॥
सर्वः कसमै : कुखधरणिधरौरवासा पयोधि र्योः पूष्णा भोगिसोको भुजगपरिपहेमाकरमेव स्नैः।।
देवस्तापचिराय प्रथितप्धुपाशाः कोलिटवीतपेयं देवी , स्वात्प्रमोदामइदिवसक्सी पुत्रवन्मोस्सवेन ॥ १॥ रावापि तदा
बस्तुकसाबबाहना पायेषु स वया किल सके । जसकल्पविरपिष्णिन भूयस्तेषु पापनमनो न पयासीत् ॥८॥
उसीप्रकार उस समय किसी स्थान पर सुवर्ण व वस्त्र-श्रादि वस्तुओं की याचना करनेवाले स्तुतिपाठक समूह यशो महाराजको निन्नप्रकार आनन्द-पूर्वक स्तुति कर रहे थे
"हे देव! आप, इन्द्र-सरीखे पुत्रशाली पुरुषों में श्रेष्ठ है और कमनीय कामिनियों के नेत्ररूप कुवलयों (चन्द्र विकासी कमलों) के उल्लासरस में प्रवीण हैं। अतः आप ऐसे पुत्रजन्म संबंधी महोत्सव से, जो कि तीन लोक को पवित्र करनेवाली यशरूप किरणों का उत्पादक है, वृद्धिंगत होवें ॥७६।। हे देव! धर्म उल्लसित होगया, सम्पत्तियाँ पुष्पित होगई और काम स्त्री के उपभोगरूप फलों से प्रशस्त होगया। इसप्रकार पापके धर्म, अर्थ और काम ये तीनों पुरुषार्थ सफल होचुके । हे राजन् ! इस समय आपके वंश की अपूर्ष और अनिर्वचनीय (वर्णन करने के लिए अशक्य) शोभा होरही है। हे देव! पृथ्वीरूपी देवता भी कतार्थ होचुकी और माद अनुराग-शाली अापके पुत्रजन्म का महोत्सव मन्त्रियों के चित्त में अत्यधिक होने के कारण समाना नहीं है |७||
हे मारिदत्त महाराज! उस समय केवल स्तुति पाठकों ने ही थशोधमहाराज की स्तुति नहीं की किन्तु मधुकी लोग भी किसी स्थान पर राजा के कुटुम्बी-जनों को हर्षित करते हुए व विशेष प्रानन्द विभोर हुए राजा का गुणगान करने के हेतु उत्कण्ठित होरहे थे। इसीप्रकार कहींपर लक्ष्मी की चाह रखनेवाला पुरोहित निम्न प्रकार के आशीर्वाद-युक्त वचन स्पष्ट बोल रहा था यह प्रत्यक्ष प्रवीत होनेवाली पम्नमवि महादेवी चिरकाल तक पुत्र, पौत्र और प्रपौत्रों (पड़पोतो) के साथ पति की लक्ष्मी का उपभोग करे Hal पुरोहित का आशीर्वाद-जिसप्रकार स्वर्ग कल्पवृक्षों से, समुद्र चन्द्रोदय से और पावावलोक परणेन्द्र से पिरफाल पर्यन्त आनन्ददायक दिनवाला होता है, एसीप्रकार तीन लोक में विख्यात ष विस्तृत हैमा जिनका ऐसे यशोघ महाराज भी पुत्रजन्म के महोत्सव से चिरकाल पर्यन्त आनन्ददायक दिनपाते
रों एवं जिसप्रकार पृथ्वी कुलाचखों से, आकाशभूमि सूर्य से और खानि की भूमि रनों से चिरकाला पर्यन्त मानन्ददायक दिनवाली होती है. उसीप्रकार विस्तृत कीर्तिशालिनी चन्द्रमति महादेवी भी पुत्रजन्म संबंधी महोत्सब से पानन्द-दायक दिनमाली होवें ॥२॥
उस समय यशोध महाराज ने भी प्रसन्मता-यश, स्तुतिपाठक-आदि वाचकों के लिए उसमकार प्रचुर गृह, वन, धान्य व सवारी-आदि मनचाही वस्तुएँ वितरण की, जिसके फलस्वरूप उनका मन पुनः
* भोयाना' इति । १. २. ३. समुच्चयाबार । ४ यवासंख्ख, समुच्चय व उपम्यलंकार आदि का संकरालंकार ।