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________________ व्रत कथा कोष --------[ ३६ कर लेने से व्रत के समस्त कार्य पूजपाठ, स्वाध्याय प्रादि अग्रत की तिथि में संपन्न किये जायेंगे, जिससे व्रत करने का फल नहीं मिलेगा। ज्योतिषशास्त्रों में गणित द्वारा तिथि के प्रमाण का साधन किया जाता है । बताया गया है कि दिनमान में पांच का भाग देने से जो प्रमाण आवे उतने प्रमाण के पश्चात तिथि में अपना प्रभाव या बल पाता है। दिनमान के पञ्चमांश से अल्प तिथि बिल्कुल निर्बल होती है । यह तिथि उस बच्चे के समान है, जिसके हाथ पैर में शक्ति नहीं, जो गिरता-पड़ता कार्य करता है । जिसकी वाणी भी अपना व्यवहार सिद्ध करने में असमर्थ है और जो सब प्रकार से अशक्त है। अतः निर्बल तिथि में व्रत आदि कार्य संपन्न नहीं किये जा सकते हैं । जो व्यक्ति उदयकाल में रहनेवाली तिथि को ही व्रत के लिए ग्रहण करने का विधान बतलाते हैं। उनके यहां प्रभावशाली या बलवान् तिथि व्रत के लिए हो ही नहीं सकती है। अधिक से अधिक दिनमान ३३ घटी का हो सकता है और कम से कम २७ घटी का। ३३ घटो का पंचमांश ६ घटी ३६ पल हुअा और २७ घटो का पंचमांश ५ घटी २४ पल हुआ । अतएव बड़े दिनों में जब की दिनमान अधिक होता है ६ घटी ३६ पल के होने पर तिथि में अपना बल प्राता है । पंचमांश से अल्प होने पर तिथि प्रबोध-शिशु मानी जाती है । अतएव उदयकालीन तिथि व्रत के लिए ग्राह्य नहीं है । सर्वदा व्रत सबल तिथि में किया जाता है, निर्बल में नहीं । अतः जैनाचार्यों ने व्रततिथि का प्रमाण छः घटी माना है, वह ज्योतिष शास्त्र से सम्मत भी है । गणित के द्वारा भी इसकी सिद्धि होती है । तीसरा दोष जो उदयकालीन तिथि मानने में आता है, वह व्रत के लिए निश्चित् तिथियों में बाधा उत्पन्न होना है। जब अतसमय में गणितागत सबल तिथि ही नहीं रही तो फिर व्रतों के लिए तिथियों का निश्चय क्या रहेगा ? तथा क्रम का भंग हो जाने पर अक्रमिक दोष भी आवेगा । अतएव व्रत के लिए उदयकालीन तिथि ग्रहण नहीं करनी चाहिए, किन्तु छः घटी प्रमाण तिथि को ही स्वीकार करना चाहिए। तिथिवृद्धि होने पर व्रतों की तिथि का विचार---
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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