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व्रत कथा कोष
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भावार्थ :-भोजन को जाते समय मार्ग में कोई दोष लग जाय या गुरुजनों की बंदना को जाते समय कोई दोष लग जाय अथवा स्थान तजते समय, मल, मूत्र, नाक, श्लेष्म छोड़ते समय कोई दोष लग गया हो तो २५ श्वासोच्छवास प्रमाण कायोत्सर्ग करे । (प्राचारसार से उद्भूत)
इति कायोत्सर्ग विधि।
सामायिक विधि समता सर्वभूतेषु संयमे शुभभावना ।
प्रातरौद्रपरित्यागस्तद्धि सामायिकं मतम् ।।
भावार्थ :-समस्त संसारी जीवों में समता भाव करना, संयम के पालन करने की भावना करना, और आर्तरौद्र ध्यान का त्याग करना ही सामायिक है ।
___ सामायिक शब्द की निरुक्ति (भाव) (१) सम (एकरूप) प्रायः (प्रागमन) अर्थात् परद्रव्यों से निवृत्त होकर प्रात्मा में उपयोग की प्रवृत्ति होना ।
(२) सम (रागद्वेष रहित) प्रायः (उपयोग की प्रवृत्ति) अर्थात् रागद्वेष परिणति का प्रभाव होकर साम्य रूप परिणति का होना सो सामायिक है।
पवित्रवस्त्रः सुपवित्रदेशे, सामायिक मौनयुतश्च कुर्यात् ।
अर्थात् पवित्र वस्त्र पहनकर, पवित्र स्थान में बैठकर मौनपूर्वक सामायिक प्रारम्भ करे।
सामायिकोपयोगी आवश्यक नियम सामायिक करने के पहले प्रष्ट शुद्धियों पर ध्यान देना जरूरी है । क्योंकि बाह्य कारणों की यथायोग्यता पर विचार न किया जाय तो सामायिक का यथार्थ रूप प्राप्त होने में सन्देह रहता है।
अष्टशुद्धियां (१) द्रव्य (पात्र) शुद्धि-पंचेन्द्रिय तथा मन को वशकर अन्तरंग कषायों को निर्बलकर और बाह्य परिग्रहों का त्याग कर षटकाय के जीवों की सर्वथा हिंसा त्याग दी ऐसे उत्तम पात्र तो संयमी साधु हैं. और अभ्यासी संयमी श्रावक सामान्य पात्र हैं।