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व्रत कथा कोष
अभिषेक व पूजन करे । और मुनियों को धर्मोपकरण तथा श्रावकों को चार प्रकार का यथायोग्य दान देवे ।
इत्येवमल्पशः प्रोक्तः प्रायश्चितविधिस्फुटम् ।
अन्य विस्तारतोज्ञेयः शास्त्रेष्वन्येषु भूरिषु ॥
भावार्थ :-इस प्रकार यह थोड़ी-सी प्रायश्चित विधि बताई गई है । यदि विस्तार से जानना हो तो प्रायश्चित शास्त्रों से जाने ।
विशेष :- जिस मनुष्य या स्त्री से अपराध हो जाय मात्र उसी को ही प्रायश्चित लेना चाहिये । अन्य बन्धु वर्ग तथा कुटुम्ब के जन अपराधी नहीं होते।
इति प्रायश्चित विधि ।
कायोत्सर्ग विधि ग्रन्थारम्भे समाप्ते च स्वाध्याये स्तवनादिषु ।
सप्तविंशतिरूच्छवासः कायोत्सर्ग मता इह ।। भावार्थ :- ग्रन्थारम्भ के आदि में व अन्त में तथा स्वाध्याय में, स्तवन में, २७ श्वासोच्छवास प्रमाण कायोत्सर्ग करे ।
अष्टविंशतिमूलेषु दिनस्य मलशुद्धये ।
अष्टाग्रशतमुच्छवास: निशायामपि तहलम ॥
भावार्थ :-अट्ठाइस मूलगुणों में अथवा व्रतों में अविचार लगने पर १०८ श्वासोच्छवास प्रमाण कायोत्सर्ग करे । यदि दिन में कोई दोष लग गया हो तो भी १०८ बार प्रमाण श्वासोच्छवास के कायोत्सर्ग करे और रात्रि में कोई दोष लग जाय तो ५४ श्वासोच्छवास प्रमाण कायोत्सर्ग करे ।
पाक्षिकं त्रिशतं ज्ञेयं चतुर्माससमुद्भवे ।
चतुः शतं शतं पंच सांवत्सरे यथागमम् ।। भावार्थ :-जहां १५ दिन में कोई दोष लग गया हो तो ३०० श्वासोच्छवास प्रमाण कायोत्सर्ग करे । और यदि ४ मास में कोई दोष लगा हो तो ५०० श्वासोच्छवास प्रमाण कायोत्सर्ग करे ।
पंचविशतिरूच्छवासः भोजने जिनवन्दनाम् ।। गते मरवे निषद्याणां पुरीषादविसर्जनम् ।।