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________________ प्रत कथा कोष [७१६ तब सब को बहुत दुःख हुआ, एक दिन ज्ञानसागर नाम के महामुनिश्वर पाहार के लिए राज भवन में आये, राजा ने भक्ति से मुनिराज को आहार दिया और मुनिराज को वहां एक आसन पर बैठा दिया, हाथ जोड़ विनय से राजा ने राजपुत्र के मर जाने की दुःखद वार्ता कह सुनाई, तब मुनिराज राजा को सद्बोधन देकर जंगल में वापस चले गये । मात्र विजयसुन्दरी पति के वियोग से अत्यन्त शोकाकुल होकर बड़ेबड़े प्रांसू बहाती हुई जोर-जोर से रोने लगी। एक दिन क्षांतिमति नाम की एक विदुषी आर्यिका राज भवन में आई, रानी ने माताजी को निरंतराय आहार दिया, उन आर्यिका माताजी ने राजकुमार के वियोगजनित होने वाले दुःख से दुःखी राज्य परिवार को सद्बोधन देकर शांत किया, राजकुमार की पत्नी को पास बुलाकर सान्त्वना दिया और कहने लगी कि हे बेटी दुःख करने से कुछ काम नहीं चलेगा, दुःख निवारण के लिए अब तुम त्रिकाल तृतीया व्रत को करो, इस व्रत के पालन करने से सब दुःखों का निवारण होता है । ऐसा कहकर माताजी ने व्रत की विधि बतलाई, आर्यिका माताजी के मुख से सर्व व्रत विधि सुनकर बिजयसुन्दरी को बहुत समाधान हुआ, और उसने भक्तिपूर्वक व्रत को ग्रहण किया, और वत का पालन करने लगी, व्रत समाप्त होने के बाद उत्सवपूर्वक उद्यापन किया, अन्त में मरकर स्त्रीलिंग का छेद करती हुई सोलहवें स्वर्ग में देव होकर जन्मी, आयुष्य समाप्त होने के बाद, इस लोक में कांची नगर के पिंगल नामक राजा के यहां तुम सुमंगल होकर उत्पन्न हुए हो, और मैं वही क्षांतिमति प्रायिका का जीव हूं जो तुमको मैंने व्रत प्रदान कर सम्बंध जोड़ा था। मैं मरकर देव हुआ, वहां से मनुष्य भव में आकर मुनि हुआ हूं इस प्रकार तुम्हारा और हमारा पूर्वभव का सम्बन्ध है, इसलिए तुमको मेरे पर मोह उत्पन्न हुआ है, तुम इसी भव से मोक्ष जाने वाले हो, यह सब सुनकर युवराज ने शीघ्र ही श्रावक व्रत ग्रहण किया और पुनः अपने नगर में वापस आ गया । एक समय कमल के अन्दर मरे हुए भ्रमर को देख कर युवराज को वैराग्य उत्पन्न हुआ, जंगल में जाकर मुनिश्वर के पास जिनदीक्षा ग्रहण किया, घोर तपश्चरण की शक्ति से केवलज्ञान उत्पन्न हुआ, अघाति या कर्मों का भी क्षय करके शाश्वत सुख को प्राप्त किया। वहां सिद्धों के सुख का अनभव करने लगा।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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