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व्रत कथा कोष
करना चाहिये, ऐसा कहकर व्रत की विधि को बताया, रानी ने सहर्ष लक्ष्मीमती व सुवर्णमाला ने व्रत को ग्रहण किया और नगरी में वापस लौट आये, क्रमेण उन लोगों ने व्रत का पालन किया, अंत में उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से स्वर्गों के सुख भोगकर, परंपरा से मोक्ष को प्राप्त किया।
सिद्ध व्रत कथा श्रावण महिने के शुक्ल पक्ष में पहले रविवार को स्नानकर शुद्ध वस्त्र पहने पूजा सामग्री प्रादि सब साथ में लेकर जिनमन्दिर जी जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर सिद्ध प्रतिमा और रत्नत्रय प्रतिमा यक्षयक्षि सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से रत्नत्रय भगवान की पूजा करे (अरहनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ) ये तीनों भगवान रत्नत्रय कहलाते हैं। सिद्ध परमेष्ठी की पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी की व क्षेत्रपाल की अर्चना करे, आदिनाथ, अरिंजय, अमितंजय, तीनों की भी पूजा करे, एक पट्टे पर तीन स्वस्तिक निकालकर ऊपर तीन पान रखकर प्रत्येक के ऊपर अर्घ्य रखे, तीन जगह अर्घ्य चढ़ावे ।
ॐ ह्रीं अहं परमल्लिमुनिसुव्रत रत्नत्रयारव्य तीर्थंकरेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ पुष्प से जाप्य करे, इस प्रकार तीन वर्ष अथवा तीन महीने अथवा तीन रविवार को इस व्रत विधि से जाप्य करे, अंत में उद्यापन करे, उस समय सिद्ध चक्र को आराधना यथाविधि से करे मुनिसंघों को चार प्रकार का दान देवे, मन्दिर में उपकरण दान देवे।
कथा इस जम्बद्वीप के भरतक्षेत्र में सुरम्य नामक बड़ा देश है । उस देश में जयंति नाम को नगरी है, उस नगरी का राजा क्षेमंकर अपनी लक्ष्मीमती रानी सहित सुख से राज्य करता था, एक दिन नगर के उद्यान में मुनिगुप्त नाम के मुनिराज आये, राजा को शुभ समाचार प्राप्त होते हो परिवार सहित दर्शन के लिये उद्यान में गया, तीन प्रद. क्षिणा लगाकर नमस्कार किया, धर्मोपदेश सुनने को सभा में बैठ गया, कुछ समय धर्मोपदेश सुनने के बाद रानी लक्ष्मीमती हाथ जोड़कर नमस्कार करती हुई प्रार्थना