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व्रत कथा कोष
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पाप के कारण उसको बहुत दुःख होने लगा, कष्ट के कारण इधर-उधर भटकने लगी । वह लड़की एक दिन नगर के बाहर जंगल में गई, उस जंगल में कल्पवृक्ष थे । एक पानी से भरा हुआ सरोवर था, पाप युक्त इस लड़की के वहां पहुंचते ही कल्पवृक्ष अदृश्य हो गये, सरोवर सूख गया, ऐसा देखकर उस शिवगामिनी लड़की को बहुत दुःख हुमा, और वह वहां मूच्छित होकर गिर पड़ी और ऐसे ही वहां निद्राधोन हो गई । निद्रावस्था के अन्दर उसको देवियां दिखती हैं, उन देवियों को उसने पूछा आप लोग किस पुण्य से ऐसे वैभव को प्राप्त हुई हो ?
तब देवियों ने कहा हमने पूर्वभव में शुक्रवार व्रत को यथाविधि पालन किया था, इसलिए ऐसे वैभव को प्राप्त हुई हैं । तब वह लड़की कहने लगी हे देवी मैंने पूर्व भव में कौनसा पाप किया जिससे इतने दुःख भोग रही हूं ? तब देवि कहने लगी कि हे कन्ये तूने पूर्वभव में जिनेन्द्र पूजा का विध्वंस किया और इस व्रत की और व्रत पालन करने वालों को निंदा की प्रतिबंध लगाया, इसी पाप के कारण तुमको ये कष्ट भोगने पड़ रहे हैं। अगर तुमको सुखी होने की इच्छा है तो तुम इस व्रत को यथाविधि पालन करो । उस कन्या ने शुक्रवार व्रत को ग्रहण किया, यथाविधि पालन किया, व्रत के पूर्ण होने पर उद्यापन किया, अन्त में मरकर ऐश्वर्य-सम्पन्न यक्षि होकर पैदा हुई है । इस प्रकार की कथानों को सुनकर राजा को बहुत प्रानन्द प्राया, भगवान ने राजा को व्रत की विधि अच्छी तरह से कही, राजा ने सहर्ष व्रत को स्वीकार किया, सब लोग नगर में वापस लौट आये, सबों ने व्रतों को यथाविधि पालन किया, आयु के अन्त में मरकर स्वर्ग को प्राप्त हुये।
सुगन्ध बंधुर व्रत कथा श्रावण शुक्ल १ से लेकर कार्तिक शु. १५ पर्यंत जिनमन्दिर में प्रतिदिन जाकर पार्श्वनाथ भगवान का धरणेन्द्रपद्मावती सहित मूर्ति का पंचामृत अभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे। - - -
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं सुगन्ध बंधुराय पार्श्वनाथाय धरणेंद्र पद्मावति सहिताय नमः स्वाहा ।
__ इस मन्त्र का १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, घी डालकर खीर चढ़ावे, अवधि से पाने वाली अष्टमी और चतुर्दशी को पहले के समान ही पूजा